एक अधिवक्ता ने पंजाब एवं चंडीगढ़ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है कि पुलिस जो प्राथमिकी दर्ज करती है, उसमें जाति लिखा जाना गलत है। वह चाहते हैं कि जाति का उल्लेख न किया जाए। उनकी बात उचित है। सिर्फ प्राथमिकी में ही नहीं कई आवेदन पत्रों में भी जाति का उल्लेख करना आवश्यक होता है। यदि हम जाति विहीन समाज की बात करते हैं तो प्राथमिकी या आवेदन पत्रों में जाति का उल्लेख क्यों किया जाना चाहिए। विडंबना है कि जिस कानून के तहत हरियाणा में वादी और प्रतिवादी की जाति दर्ज की जाती है, वह कानून सन 1934 में अंग्र्रेजों ने बनाया था। लेकिन उनके चले जाने का बाद भी उनकी व्यवस्था चली आ रही है। यही वजह है कि प्राथमिकी की भाषा ऐसी होती है जो आमजन की समझ से बाहर होती है। उसमें अरबी-फारसी के शब्द भरे होते हैं। चूंकि अंग्रेजों से पहले मुस्लिम शासक थे तो न्याय व्यवस्था उन्हीं के हाथ में थी।
अंग्र्रेजों ने भी उन्हीं शब्दों को अंग्र्रेजी के स्थानापन्न के रूप में रख लिया। वे शब्द भी यथावत बने हुए हैं। हालांकि दो वर्ष पहले हरियाणा सरकार ने प्राथमिकी में इस्तेमाल किए जाने वाले अरबी-फारसी के 140 शब्दों के स्थान पर्र ंहदी के शब्दों की सूची जारी की थी, और इसे सभी थानों में भेज दिया गया था। कुछ इस तरह का संशोधन जाति लिखे जाने के बारे में भी होना चाहिए। सिर्फ प्राथमिकी में ही नहीं बल्कि सभी शासकीय पत्रों में, आवेदन पत्रों में और अन्यत्र भी। सार्वजनिक क्षेत्रों में भी ऐसा ही किया जाना चाहिए। यदि हम संबंधित व्यक्ति के नाम के साथ पहचान के लिए उसके पिता का नाम लिखते हैं तो जाति लिखने की आवश्यकता वैसे भी नहीं रह जाती। आज तो पहचान के लिए आधार का नंबर ही पर्याप्त होता जा रहा है, इसलिए नाम के साथ उसका उल्लेख किया जा सकता है। शासन और प्रशासन को प्रेषित किए जाने वाले आवेदन पत्रों में जाति लिखे जाने के पीछे यह तर्क दिया जा सकता है कि पिछड़ी जातियों के उत्थान के लिए आरक्षण का प्रावधान है। यह तर्क लचर है। जब आप पिछड़े वर्ग का लाभ देने के लिए अलग से प्रमाण पत्र लेते हैं तो आवेदन पत्र में जाति लिखवाने की कोई आवश्यकता नहीं।

 [ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]