यह तो बिल्ली को दूध की रखवाली देने जैसा मामला है। जिस अफसर पर अवैध खनन के रोक की जिम्मेदारी हो, वही अगर इसे बढ़ावा दे तो बात बहुत गंभीर है।
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जिस अफसर पर अवैध खनन को संरक्षण देने का सीधा आरोप हो और जिसके खिलाफ संबंधित जिले के उपायुक्त ने ही बर्खास्त करने की अनुशंसा की हो, उसका अब तक बने रहना कई प्रकार के संदेह को जन्म देता है। झारखंड के लिए प्रकृति की अनुपम देन यहां की खनिज संपदा है लेकिन, इसके अनियंत्रित दोहन से न केवल राजस्व की हानि हो रही है बल्कि कई बार जानमाल का नुकसान भी हो रहा है। दुमका के जिस जिला खनन पदाधिकारी संजीव कुमार मंडल पर वहां के उपायुक्त राहुल सिन्हा ने प्रतिकूल टिप्पणी दर्ज कराई है, उन पर यह भी आरोप है कि उनकी अनदेखी से अवैध खनन में दो लोगों की जान जा चुकी है। यह तो बिल्ली को दूध की रखवाली करने देने के जैसा मामला है। जिस अफसर पर अवैध खनन के रोक की जिम्मेदारी बनती हो, वही अगर इसे बढ़ावा दे तो बात बहुत गंभीर हो जाती है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह मामला बीते दिनों मुख्यमंत्री रघुवर दास के भी संज्ञान में लाया गया, लेकिन अब तक ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी है। उद्योग और खान विभाग ने अब तक आरोपी अधिकारी से स्पष्टीकरण भी नहीं पूछा है और न ही कोई जांच टीम गठित की गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि अब किसका इंतजार हो रहा है। उपायुक्त पर जिले की संपूर्ण प्रशासनिक गतिविधियों के ठीक से संचालन की जिम्मेदारी होती है। जिला खनन पदाधिकारी संजीव कुमार मंडल के मामले में फरवरी माह में ही दुमका के उपायुक्त ने मनमानी करने, मुख्यमंत्री जनसंवाद में प्राप्त निर्देश की अवहेलना करने और अवैध खनन पर नकेल में विफल रहने का आरोप लगाते हुए उनकी बर्खास्तगी की अनुशंसा की थी। इस बीच दुमका प्रवास के दौरान मुख्यमंत्री रघुवर दास के संज्ञान में भी यह बात लाई गई। मुख्यमंत्री ने भी इस गंभीरता से लिया था और कहा था कि कार्रवाई जरूर होगी। इतने पर भी त्वरित कार्रवाई नहीं होने से प्रशासनिक स्तर पर अच्छा संदेश नहीं जा रहा है। ऐसे में खनन माफिया का भी मनोबल बढ़ता ही जाएगा और नकेल कसना मुश्किल होगा। इसलिए जरूरी है कि सरकार तुरंत इस पर संज्ञान ले।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]