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ब्लर्ब में
अपने द्वारा पैदा की गई लावारिस पशुओं की समस्या का हल निकालने के लिए समाज को आगे आना होगा। लोगों को मानसिकता बदलनी होगी व पशुओं को खुला छोडऩे से बचना होगा
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माता का दर्जा पाने वाली गाय लावारिस बन सड़कों पर घूम रही है। कभी सड़कों पर गायों व गोवंश के झुंड हादसों का कारण बनते हैं तो कभी खेतों में घुसकर फसलों की बर्बादी का कारण। आक्रामक होकर लोगों पर हमले बोलना भी अब नई बात नहीं रह गई है। जिस समय इन्हें देखभाल की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, इन्हें खुला छोड़ दिया जाता है। इसी का नतीजा है कि प्रदेश की हर सड़क पर लावारिस पशु झुंड में घूमते दिखते हैं। मुश्किल यह है कि जिम्मेदार वर्ग जिम्मेदारी को गंभीरता से नहीं लेता, जिससे मुश्किलें कम होने की जगह बढ़ती जाती हैं। सरकार ने पंचायत प्रतिनिधियों को पशुओं को लावारिस छोडऩे वालों के खिलाफ मामले दर्ज व जुर्माना लगाने की शक्तियां तो दीं, लेकिन सवा तीन हजार पंचायतों में ऐसा एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ। गोसदन खोलने की बात तो होती है, लेकिन शर्तें इतनी कड़ी हैं कि लोग चाहकर भी कदम पीछे खींचने के लिए मजबूर महसूस करते हैं। पशुओं को टैग लगाने की योजना चली थी, ताकि पता चल सके कि लावारिस पशु छोडऩे वाला कौन है। समय के साथ यह मुहिम भी सिरे नहीं चढ़ सकी। प्रदेश हाईकोर्ट सरकार को आदेश दे चुका है कि लावारिस पशुओं को आश्रय देने के लिए गोसदन खोले जाएं, लेकिन इस दिशा में भी ज्यादा गंभीरता नहीं दिखाई दी। लावारिस पशुओं का आतंक इतना है कि कई स्थानों पर इनसे दुखी होकर किसानों ने खेती छोड़ दी है। यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि लावारिस पशुओं की समस्या के लिए समाज खुद जिम्मेदार है। यह आम धारणा है कि पशुओं को सिर्फ तभी तक पालता है, जब तक उससे लाभ मिलता है। जब लाभ नहीं तो पशुओं को खुला छोडऩा ही बेहतर विकल्प माना जाता है। अपने द्वारा पैदा की गई समस्या का हल निकालने के लिए समाज को ही आगे आना होगा। लोगों को मानसिकता बदलनी होगी तथा पशुओं को लावारिस छोडऩे की आदत छोडऩी होगी। ऐसा नहीं होना चाहिए कि सरकारी या अदालती आदेश पर ही चेतना जागे। लोग अगर सच में गाय को माता समझते हैं तो उन्हें इसे आचरण में भी लाना होगा। यह नहीं भूलना चाहिए कि विकास के पथ पर वही समाज अग्रसर होता है, जो अपनी धरोहर, मान्यताओं व परंपरा को संजोकर रखता है। उम्मीद करनी चाहिए कि लोग सजग होंगे व पशुओं को खुले में छोडऩे से बचेंगे। यह नैतिक ही नहीं सामाजिक दायित्व भी है, जिसका पालन करना सबके हित में होगा।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]