पाकिस्तान की ओर से भारतीय सीमावर्ती क्षेत्रों में गोलाबारी को देखते हुए सरकारी स्कूलों में छुट्टियों की घोषणा छात्रों की सुरक्षा को देखते हुए तो ठीक है। लेकिन छात्रों की पढ़ाई का कोई वैकल्पिक बंदोबस्त न होने से छात्रों की पढ़ाई बर्बाद हो रही है। यह दूसरा मौका है जब सीमांत इलाकों में सरकार को स्कूलों को बंद करना पड़ा। पाकिस्तान की हिमाकत को देखते हुए जिला प्रशासन ने शनिवार को दस दिन के अंदर दूसरी बार स्कूलों को बंद करना पड़ा। अधिकतर स्कूलों में पाठ्यक्रम पूरा नहीं हो पाया है, जबकि वार्षिक परीक्षाएं नजदीक आ रही हैं। अगर गोलाबारी नहीं रुकी तो स्कूलों को खोलना प्रशासन के लिए मुश्किल हो जाएगा। सरकार को चाहिए कि वह कैंपों में स्कूलों को चलाएं ताकि छात्रों की पढ़ाई बर्बाद न हो। प्रतिस्पर्धा के इस युग में चंद दिन भी पढ़ाई न होने से विद्यार्थियों के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। ऐसे में वर्तमान हालात में विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों का चिंतित होना स्वभाविक है। विगत तीन दिन से जम्मू के कई सीमावर्ती क्षेत्रों में पाकिस्तान की ओर से गोलीबारी हो रही है। बोर्ड की परीक्षाओं को लेकर विद्यार्थियों पर पढ़ाई का दबाव है। इस समस्या का स्थायी समाधान निकालने की जरूरत है। गोलाबारी को लेकर भी अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है कि सीमाओं पर कब गोलाबारी शुरू हो जाए। सरकार को चाहिए कि वह ऐसे स्थानों पर वैकल्पिक स्कूलों की व्यवस्था करे, जो कि सुरक्षित हों। इससे विद्यार्थियों की पढ़ाई का नुकसान नहीं होगा और उन पर मानसिक तनाव भी कम होगा। इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। यह सर्वविदित है कि कश्मीर संभाग में जारी ङ्क्षहसा के कारण पहले से ही वहां के स्कूल तीन महीनों से बंद हैं और कहीं पर भी पढ़ाई नहीं हो रही है। शिक्षा को हो रहे नुकसान पर सरकार को मंथन करने की जरूरत है। पहले से ही कश्मीर में ङ्क्षहसा और प्रदर्शनों के कारण कई परीक्षाएं और प्रतिस्पर्धाएं रद करनी पड़ी है। पूरा सत्र ही बर्बाद न हो जाए इसके लिए गंभीरतापूर्वक प्रयास करने की जरूरत है।

[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]