-----एक दूसरे के सुख-दु:ख में सहभागी बनने का संदेश देने वाले त्योहारों को उनकी संपूर्णता के साथ मनाना चाहिए, न कि हुड़दंग व अराजकता से त्योहारों का उद्देश्य ही समाप्त कर दिया जाना चाहिए।-----कुछ लोगों के लिए पर्व-त्योहार का मायने मौज-मस्ती, हो हल्ला-हुड़दंग, मारपीट और अराजकता होता है। उसके वास्तविक अर्थ, संदेश और उद्देश्य से उनका कोई सरोकार नहीं। सोशल मीडिया पर कई दिन पहले से होली को पावन त्योहार बताकर एक दूसरे को बधाई देते और उनकी सुख-समृद्धि, यश, कीर्ति, सम्मान की कामना करते लोग थक नहीं रहे थे लेकिन, त्योहार के उद्देश्य पर खरा उतरने की बारी आई तो तमाम लोग इसमें विफल हो गए। होली पर जगह-जगह हिंसक घटनाएं सामने हुई। कई जगह खून की होली खेली गई तो कई जगह सद्भाव की जगह नफरत का रंग फैला। कई स्थानों पर सांप्रदायिक माहौल भी बिगड़ गया। आजमगढ़ में होलिका जलाने को लेकर दो समुदायों के बीच विवाद हुआ था, जो होली के एक दिन बाद और उग्र हो गया। लोगों ने एक दूसरे के सिर फोड़ डाले। ऐसी ही घटनाएं और भी जगह से सामने आ रही हैं। दरअसल हम त्योहार मनाते तो हैं लेकिन, उसके विशेष धार्मिक, पौराणिक व सामाजिक महत्व को भूल जाते हैं। ये त्योहार ही हैं जो जीवन की विषम परिस्थितियों से बाहर निकाल कर सुखद परिवर्तन लाते हैं। उसमें ऊर्जा, नवीनता, हर्षोल्लास का नया रंग भर फिर से तरोताजा कर देते हैं। ये त्योहार ही हैं जो हमें हमारी सामाजिक मान्यताओं, परंपराओं व पूर्व संस्कारों से जोड़े रखते हैं। घर, परिवार, रिश्तेदार, समुदाय, समाज और देश में जुड़ाव, सद्भाव और एकता के लिए भी ये त्योहार ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक दूसरे के सुख-दु:ख में सहभागी बनने का संदेश देने वाले त्योहारों को उनकी संपूर्णता के साथ मनाया जाना चाहिए, न कि हुड़दंग और अराजकता से त्योहारों का उद्देश्य ही समाप्त कर दिया जाना चाहिए। ऐसा करने वाले चाहे किसी भी जाति, धर्म, समुदाय से हों उन्हें माफ नहीं किया जा सकता। वस्तुत: इनकी सोच, विचार और उद्देश्यों का एकमेव मकसद समाज में अशांति फैलाना है। ऐसा कर वे अपने किसी न किसी स्वार्थ की पूर्ति करते हैं। यह स्वार्थ व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने से लेकर सामाजिक, सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने तक कुछ भी हो सकता है। समाज को ऐसे लोगों से न केवल सतर्क रहने की जरूरत है, बल्कि ऐसी परिस्थिति में बिना धैर्य खोए पूरे विवेक के साथ उनके मंसूबों को नाकाम करने की जरूरत होती है। सही मायने में किसी भी पर्व-त्योहार के पावन उद्देश्यों को आत्मसात करते हुए शांति पूर्वक हर्ष और उमंग के साथ मनाने में ही उसकी संपूर्णता निहित है।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]