झारखंड सरकार ने विलुप्त होने की कगार पर आ चुके आदिम जनजाति के लिए स्पेशल हेल्थ पैकेज तैयार किया है। इस समुदाय के लिए खास तौर पर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने की योजना बनाई गई है। राज्य में नौ आदिम जनजातियां निवास करती हैं जिसमें असुर, बिरहोर, बिरिजिया, हिल खडिय़ा, कोरवा, माल पहाडिय़ा, पहाडिय़ा, सौरया पहाडिय़ा तथा सबर शामिल हैं। इनमें साक्षरता का प्रतिशत काफी कम है। आबादी लगभग 2.92 लाख है जो लगातार कम भी हो रही है। ये जनजातियां साहिबगंज के बरहेट प्रखंड के 106 गांवों, दुमका के काठीकुंड प्रखंड के 67 गांवों, पाकुड़ के लिट्टीपाड़ा स्थित 100 गांवों तथा गढ़वा के चिनिया व भंडरिया प्रखंड स्थित क्रमश: 24 तथा 30 गांवों में निवास करती हैं। राज्य सरकार की योजना के मुताबिक चालू वित्तीय वर्ष में इसके तहत तीन करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। आदिम जनजाति बहुल प्रखंडों में इनके लिए अलग से स्वास्थ्य उपकेंद्रों की स्थापना होगी। इन स्वास्थ्य केंद्रों का निर्माण जनजातीय समुदाय के पारंपरिक आवासीय ढांचा के रूप में होगा। समुदाय में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता लाने तथा आवश्यक स्वस्थ जीवन शैली अपनाने के लिए समुदाय के बीच से ही साक्षर पुरुष-महिलाओं का चयन स्वास्थ्य मित्र के रूप में किया जाएगा। ये नियमित रूप से केंद्र में अपनी सेवा देंगे तथा लोगों का आकस्मिक उपचार करेंगे। सरकार उन्हें हर माह 1500 रुपये बतौर मानदेय देगी। ऐसे युवाओं को पारा मेडिकल व नर्सिंग का भी प्रशिक्षण दिया जाएगा। आदिम जनजाति में खून की कमी की एक बीमारी सिकल सेल एनिमिया आनुवांशिक है। यह पौष्टिक आहार की कमी के कारण होता है। सबसे ज्यादा जोर इससे निपटने पर होगा। ऐसे रोगियों की पहचान कर उन्हें बेहतर खानपान एवं रहन सहन के लिए 1000 रुपये देगी। यह राशि उनके बैंक खाते में जमा की जाएगी। इन्हें पौष्टिक आहार देने के लिए भी राज्य सरकार ने नए सिरे से योजना बनाई है जिसके तहत खुला अनाज देने की बजाय पैकेट में बंद अनाज इन्हें दिया जाएगा। अमूमन बिचौलिए इन्हें पूरा अनाज नहीं देते। इसकी शिकायत आने के बाद खाद्य आपूर्ति विभाग ने सख्त कदम उठाए हैं। आदिम जनजाति के लिए अलग से दो प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान नौकरियों में किया गया है। जागरूकता नहीं होने के कारण यह समुदाय नशे की चपेट में है। इससे बाहर निकालने के लिए भी योजनाएं तैयार करने की जरूरत है। इस कार्य में बेहतर परिणाम दे रही स्वयंसेवी संस्थाओं की भी मदद ली जा सकती है।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]