दिल्ली नगर निगम चुनावों में भाजपा ने हैट्रिक जरूर लगाई है लेकिन इस बार उसके सारे पार्षद नए हैं और दिल्लीवालों को इस नए युग का स्वागत करना चाहिए। पिछले 10 साल दिल्ली के तीनों नगर निगम में भाजपा का कब्जा रहा। उसके ऊपर भ्रष्टाचार के कई आरोप भी लगे। ज्यादा काम भी नहीं हुआ। इसके बावजूद दिल्ली ने उन्हें तीसरी बार मौका दिया। निश्चित तौर पर इससे नए पार्षदों के साथ ही भाजपा के दिल्ली नेतृत्व पर अतिरिक्त जिम्मेदारी आ गई है। भाजपा नेतृत्व के पास यह बड़ा अवसर है क्योंकि नए पार्षदों पर नकेल कसना भी आसान होता है और उनसे आसानी से काम भी कराया जा सकता है। वहीं नए पार्षदों के पास भी मौका है कि वे कूड़ा-कचरा मुक्त दिल्ली के साथ डेंगू-चिकनगुनिया से राजधानीवासियों को बचाने के लिए मजबूत प्रयास करें।
दिल्ली की जनता ने भाजपा को तीनों नगर निगम में स्पष्ट बहुमत दिया है और अब राजधानीवासियों को बदहाल सफाई व्यवस्था, स्कूलों-अस्पतालों की बदहाल स्थिति, पार्किंग की समस्या, जलभराव, आवारा पशुओं की समस्या, पार्कों की बदहाली और निगम कार्यालयों में भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलनी चाहिए। दिल्ली भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा है कि वह नजर रखेंगे कि क्या काम हो रहा है और क्या नहीं। यही नहीं उनका कहना है कि हमने अगले चार महीने की कार्ययोजना भी बना रखी है। निश्चित ही अगर ऐसा है तो बहुत अच्छी बात है क्योंकि अगर इस बार वे अच्छा काम नहीं कर पाए तो दिल्लीवाले उन्हें आम आदमी पार्टी की तरह नकार भी सकते हैं।
यही कारण है दिल्ली में झुग्गी झोपडिय़ों, अनियोजित कॉलोनियों और दिल्ली नगर निगम क्षेत्र में आने वाले पॉश इलाकों की बदहाल सफाई व्यवस्था को अब खत्म करना ही होगा। अगर राजधानीवासियों ने भाजपा को मोदी के नाम पर वोट दिया है तो उन्हें देश की राजधानी को स्वच्छ भारत अभियान का मॉडल स्टेट बनाकर दिखाना भी होगा।
यहां हर साल सैकड़ों लोगों की जान डेंगू और चिकनगुनिया जैसी जानलेवा बीमारियों से जाती है। पिछली बार तो नगर निगम और दिल्ली सरकार के बीच इसको लेकर कोई समन्वय तक नजर नहीं आया। इसके बावजूद जनता ने राज्य में काबिज आम आदमी पार्टी की जगह भाजपा के साथ जाने का फैसला किया। निश्चित तौर पर इसे दोनों पार्टियों को समझना चाहिए और जनता के हित में राजनीतिक विरोध को एक ओर रखते हुए मिलकर काम करना चाहिए क्योंकि जनता काम चाहती है। उसे राजनीतिक पार्टियों की आपसी लड़ाई और बहानेबाजी में कोई दिलचस्पी नहीं है।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]