उत्तराखंड विधानसभा के बजट सत्र में लोकायुक्त विधेयक और तबादला विधेयक भी पेश और पारित किए जाएंगे, जिनकी लंबे समय से प्रतीक्षा की जा रही थी।
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उत्तराखंड की चौथी निर्वाचित विधानसभा का पहला बजट सत्र गुरुवार से आरंभ हो रहा है। सत्र में वित्तीय वर्ष 2017-18 का बजट तो पेश किया ही जाएगा, इसके अलावा लोकायुक्त विधेयक और तबादला विधेयक भी सदन में पेश और पारित किए जाएंगे, जिनकी लंबे समय से प्रतीक्षा की जा रही थी। हालांकि, ये दोनों विधेयक गत मार्च में नई सरकार ने पहले विधानसभा सत्र में ही पेश कर दिए थे लेकिन तब इन्हें प्रवर समिति के सुपुर्द कर दिया गया था। दो महीने की मशक्कत के बाद प्रवर समिति ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर ली है और अब समिति के प्रतिवेदन के साथ दोनों विधेयक विधानसभा में पेश कर पारित कराए जाएंगे। इन दोनों विधेयकों का उत्तराखंड में लंबे समय से इंतजार था। वैसे तो वर्ष 2011 में भुवन चंद्र खंडूड़ी के नेतृत्व वाली तत्कालीन भाजपा सरकार ने इन दोनों विधेयकों को विधानसभा से पारित करा दिया था मगर इसके बाद सूबे की सत्ता कांग्रेस के हाथ आने पर दोनों ही ठंडे बस्ते में चले गए। लोकायुक्त विधेयक में पिछली कांग्रेस सरकार ने कई दफा संशोधन किए मगर इसके बावजूद लोकायुक्त का गठन नहीं हो पाया। तबादला विधेयक का वजूद तो पिछली सरकार ने खत्म ही कर दिया था। भाजपा ने हालिया विधानसभा चुनाव में जनता से वादा किया था कि सत्ता में आने पर लोकायुक्त और तबादला विधेयक को सौ दिन में लागू कर दिया जाएगा। अब जबकि सरकार इसी महीने अपने सौ दिन का कार्यकाल पूर्ण करने जा रही है, दोनों विधेयक विधानसभा से पारित कराने की सरकार ने पूरी तैयारी कर ली है। मौजूदा सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति को सर्वोच्च प्राथमिकता घोषित किया है और ये दोनों विधेयक कानून का रूप लेने के बाद सरकार के लिए इस मुहिम में खासे मददगार साबित होंगे। लोकायुक्त संस्था के गठन के बाद भ्रष्टाचार के मामलों पर कुछ हद तक अंकुश लगने की उम्मीद की जा सकती है। जहां तक तबादला कानून का सवाल है, राज्य गठन के बाद के पिछले सोलह सालों में तबादला उत्तराखंड में उद्योग की शक्ल ले चुका है। अधिकांश पहाड़ी भूभाग होने के कारण पर्वतीय जिलों में न तो कोई शिक्षक तैनाती चाहता है और न कोई डॉक्टर। इसका नतीजा यह हुआ है कि दूरदराज के स्कूलों में न तो शिक्षक हैं और न अस्पतालों में डॉक्टर। अब तबादला कानून के अस्तित्व में आने के बाद सरकारी कार्मिकों की तबादला प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी। सरकार की यह पहल निश्चित रूप से स्वागतयोग्य है।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]