हर साल फीस में मनमर्जी से बढ़ोतरी और तमाम मदों के नाम पर अभिभावकों की जेबें ढीली करने की परंपरा कोई नई नहीं है। यह पूरा खेल हर साल खेला जाता है।
-----------
प्रदेश के शिक्षा मंत्री ने निजी स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगाने के लिए जो महत्वपूर्ण पहल की है, उसका स्वागत किया जाना चाहिए। निजी स्कूल जिस तरह अपने यहां छात्रों के दोबारा दाखिले के नाम पर अभिभावकों का जमकर शोषण करते आ रहे हैं, उस बात को शिक्षा मंत्री ने समझा और स्कूलों को इस मद में ली गई फीस लौटाने के आदेश कर दिए। दरअसल, हर साल फीस में मनमर्जी से बढ़ोतरी और तमाम मदों के नाम पर अभिभावकों की जेबें ढीली करने की परंपरा कोई नई नहीं है। यह पूरा खेल हर साल खेला जाता है। इसमें करोड़ों नहीं, बल्कि अरबों की धनराशि निजी स्कूल वसूलते हैं। कभी किताबों, स्कूल यूनीफार्म के नाम पर तो कभी बिल्डिंग चार्ज और अन्य गतिविधियों के नाम पर छात्रों से बड़ी धनराशि वसूल की जाती है। महत्वपूर्ण बात यह कि यह बड़ी धनराशि स्कूल फीस के नाम पर ली जाने वाली धनराशि के अलावा होती है। हर साल स्कूलों में दाखिले के वक्त निजी स्कूलों की इस मनमानी के खिलाफ अभिभावकों का गुस्सा फूटता है मगर राज्य बनने के बाद के अब तक के सोलह सालों में किसी भी सरकार ने अभिभावकों की इस पीड़ा की तवज्जो देना मुनासिब नहीं समझा। उत्तराखंड, खासकर देहरादून, मसूरी और नैनीताल देश में ही नही, बल्कि विदेश में भी शिक्षा के क्षेत्र में ख्याति रखते हैं। अभिभावक निजी स्कूलों की ख्याति से प्रभावित होकर अपने बच्चों को यहां दाखिला दिलाते हैं, मगर जिस तरह उनका शोषण किया जाता है, उससे उनके सपने चूर-चूर हो जाते हैं। स्थिति यह है कि पहली कक्षा से लेकर बारहवीं कक्षा पास कराने तक हर महीने अभिभावकों से विभिन्न मदों में धनराशि वसूली जाती है, जिसे चुकाने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं बचता। एक आकलन के मुताबिक केवल देहरादून में ही साठ से ज्यादा निजी स्कूलों में ढाई लाख से ज्यादा बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और इनके अभिभावकों से हर साल वसूली जाने वाली धनराशि लगभग साढे सात सौ करोड़ से ज्यादा बैठती है। अब अगर राज्यभर के निजी स्कूलों के आंकड़ों को भी इसमें शामिल कर लिया जाए, तो खुद ही अंदाजा लगाइए, हर साल सैकड़ों करोड़ का यह कारोबार शिक्षा के नाम पर चल रहा है। अब हालांकि शिक्षा मंत्री ने इस परिपाटी पर लगाम कसने के लिए कदम तो उठा लिए हैं, मगर यह महत्वपूर्ण सवाल अपनी जगह कायम है कि क्या बड़े और नामी स्कूल सरकार के इस फैसले का पालन करेंगे। अगर सरकार इसमें कामयाब हो गई तो निश्चित रूप से शिक्षा के क्षेत्र में अभिभावकों के लिए यह एक बड़ी राहत साबित होगी।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]