बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने प्रदेश में किसानों-बागवानों की चिंता बढ़ा दी है और तेज तूफान ने हमारे पूर्व आपदा प्रबंधन की पोल भी खोल दी
प्रदेश में मौसम का बदलाव राहत के साथ दिक्कतें लेकर आया है। पहले एकदम से तापमान में वृद्धि के साथ अब बेमौसम बरसात और आंधी ने किसानों के साथ बागवानों की परेशानी बढ़ा दी है। चंबा जिले में तेज तूफान से कई स्कूलों की छतें उड़ गईं और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की मौत हो गई। बारिश बेशक गेहूं और अन्य फसलों के लिए संजीवनी साबित हुई लेकिन फलदार पौधों के लिए आफत से कम नहीं है। फलदार पौधों में इस समय अंकुर फूट रहे हैं ऐसे समय में तेज आंधी से कई पौधों से यह अंकुर झड़ गए, जिससे फसल को काफी नुकसान हुआ है। ओलावृष्टि से स्टोन फ्रूट की फसल तो बर्बाद होने की कगार पर पहुंच गई है। निचले हिमाचल में आम की फसल में इस समय बौर आने का समय है और तेज तूफान ने यह सब हवा के झोंके के साथ मिट्टी में मिल गया जबकि सेब बाहुल्य क्षेत्रों में भी फसल काफी प्रभावित हुई है। पिछले साल के मुकाबले में इस बार प्रदेश में सेब की पैदावार आधी रहने की संभावना है। शिमला जिले के चौपाल, ठियोग, मशोबरा में सेब की फसल को ओलावृष्टि ने 60 प्रतिशत खत्म कर दिया है। सेब के पौधों के फूल पूरी तरह गिर गए हैं। साल भर की मेहनत का बर्बाद होता देखकर बागवानों के चेहरे मुरझा गए हैं। मौसम चक्र में यह बदलाव वैश्विक ताप के कारण हो रहा है। प्रकृति के छेड़छाड़ का नतीजा लोगों पर खुद भारी पड़ रहा है। अवैज्ञानिक खनन और पेड़ों का अंधाधुंध कटान इसके अहम कारण हैं। तेज तूफान से जनजातीय जिलों में विद्युत आपूर्ति बाधित है। बारिश और तूफान ने हमारी पूर्व आपदा प्रबंधन की पोल भी खोली है। करीब तीन दिन से अंधेरे में रह रहे लोगों के लिए कोई उम्मीद किरण न जलना बताता है कि ऊर्जा राज्य में व्यवस्था का अंधेरा किस कद्र है। यह सही है कि किसी भी आपदा को रोका नहीं जा सकता है, लेकिन अगर हमारा प्रबंधन सही होगा तो इसे कुछ हद तक कम किया जा सकता है। बरसात से पहले ही इस तरह अव्यवस्था हमें चेताने के लिए काफी है। यह समय जागने और जगाने वाला है। किसानों को फसल बीमा योजना के लिए जागना होगा और प्रशासन को पूर्व आपदा प्रबंधन के लिए जगाने वाला संदेश है।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]