फसल के सीजन में मौसम के बदलते तेवर एक बार फिर किसानों को दर्द दे रहा हैं। किसानों के पसीने सोना बना अनाज में पहुंच चुका है। वहां अनाज के ढेर लगे हुए हैं। कुछ किसानों की फसल अभी खेतों में ही खड़ी है, लेकिन मौसम किसानों की मेहनत पर पानी फेरने को आतुर दिख रहा है। भले ही फिलहाल ज्यादा नुकसान दिखाई नहीं दे रहा है, लेकिन खतरा अभी टला नहीं है। पश्चिमी विक्षोभ फिर से किसानों की समस्याएं बढ़ा सकता है। ऐसे में किसान कुदरत के सामने लाचार हैं। यह सही है कि मौसम पर नियंत्रण नहीं पाया जा सकता, लेकिन कृषि प्रधान हरियाणा में किसानों की चिंताओं के समाधान के लिए बेहतर विकल्प तो खोजे ही जाने चाहिए। फसल सुरक्षा बीमा योजना से सरकार ने समाधान देने का प्रयास किया है, लेकिन बीमा कंपनियों की धीमी प्रक्रिया ने इस योजना को सवालों के घेरे में ला दिया है।
कृषि मंत्री भले ही किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से मुक्त करने का दावा करें. लेकिन स्थिति यह है कि किसान कुदरत के समक्ष लाचार ही दिखता है। अधिकतर किसानों के पास जोत कम है और संसाधन सीमित हैं। ऐसे में वह स्वयं अपनी फसल को सुरक्षित संजो पाए यह मुश्किल है। इसलिए आवश्यक है कि सरकार विभिन्न बिंदुओं के तहत समेकित प्रयास करे। अगर किसान के पास मौसम की सटीक जानकारी पहुंचे तो वह अपनी फसल का बेहतर प्रबंधन कर पाएगा। इसके अलावा ऐसी व्यवस्था बनानी होगी कि मंडियों में पहुंचने के बाद फसल हर आपदा से सुरक्षित हो। फिलहाल मंडियों में पहुंचने के बावजूद किसान की चुनौतियां कायम रहती हैं। इसके निदान को निजी कंपनियों का सहयोग लिया जा सकता है। खुद किसानों को भी खेती के तरीकों में बदलाव लाना चाहिए। अपने क्षेत्र की मौसम की चुनौतियों के अनुरूप ही उन्हें काम करने की व्यवस्था करनी होगी। उन्हें आधुनिक तकनीक अपनानी होगी। बेहतर प्रबंधन से प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को सीमित किया जा सकता है। यह अति आवश्यक है।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]