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समाज गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा के लिए जरूरी संसाधनों की कमी की बहुत बड़ी कीमत चुका रहा है।
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तपती धूप में टाट व पट्टी पर बैठे नौनिहाल...और सामने जर्जर भवन! यह ऐसी तस्वीर है जो आजादी के इतने साल बाद भी व्यवस्था की दीवारों पर लापरवाही की कीलों से टंगी है। यह हाल हिमाचल प्रदेश के सबसे शिक्षित जिले हमीरपुर के राजकीय 'आदर्श' प्राथमिक पाठशाला दांदड़ू का है, जहां भवन न होने से खुले आसमान के नीचे धूप में नई पौध झुलस रही है। अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि दूरदराज के क्षेत्रों में प्राथामिक स्कूलों में शिक्षा का स्तर कैसा होगा। कई जगह जागरूक लोग व स्कूल प्रबंधन समितियां सरकारी स्कूलों में बच्चों को दाखिल करवाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन सरकारी ढील उन प्रयासों को कमजोर कर रही है। एक तरफ सरकारी स्कूलों का बदहाल ढांचा है, तो दूसरी ओर निजी स्कूलों का जाल फैल रहा है, जहां विद्यार्थियों को सारी सुविधाएं और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल रही है। इन स्कूलों में अधिकारी, उच्च और उच्च मध्यवर्ग के बच्चे पढ़ते हैं, चूंकि इन स्कूलों में दाखिला और फीस आम आदमी से बाहर है। लिहाजा निम्न मध्यवर्ग और आर्थिक रूप से सामान्य स्थिति वाले लोगों के बच्चों के लिए सरकारी स्कूल ही बचते हैं। कई स्कूलों में न तो माकूल अध्यापक हैं और न ही मूलभूत सुविधाएं। अधिकारियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढऩे की अनिवार्यता न होना भी सरकारी स्कूलों की दुर्दशा का एक कारण हो सकता है। क्योंकि अधिकारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ते इसलिए उनका इनसे सीधा लगाव भी नहीं हो पाता। प्रदेश में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की तस्वीर ऐसी ही है। शिक्षा का अधिकार कानून के बाद भी सकारात्मक बदलाव कम ही है। एक बुनियादी जरूरत के रूप में शिक्षा का सवाल हमेशा उसकी गुणवत्ता से जुड़ता है और गुणवत्ता काफी हद तक पठन-पाठन के लिए जरूरी संसाधनों, जैसे स्कूल भवन, पर्याप्त संख्या में योग्य शिक्षक, लाइब्रेरी, शौचालय व पेयजल आदि सुविधा की उपलब्धता से सुनिश्चित होती है। लेकिन, किसी स्कूल में भवन तक न होना निराशाजनक है। शिक्षा के लिए जरूरी ढांचे के अभाव में बच्चे बीच में ही पढ़ाई छोडऩे को मजबूर हो रहे तो अचरज की बात नहीं। सामाज गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा के लिए जरूरी संसाधनों की कमी की बहुत बड़ी कीमत चुका रहा है। बच्चों को जरूरी स्कूली ज्ञान से वंचित रखना एक तरह से भावी नागरिक को मुख्यधारा में प्रवेश से वंचित रखना ही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार व शिक्षा विभाग के अधिकारी सुधार के सक्रिय होंगे और प्राथमिक व माध्यमिक स्तर की शिक्षा की तसवीर सुधारने के लिए कुछ बड़ी पहल की जाएगी।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]