सावन-भादो में इस वर्ष अच्छी वर्षा झारखंड को एक तरह से चेतावनी दे रही है कि उसके पानी का महत्व समझा जाना चाहिए। पिछले मानसून में अपेक्षाकृत कम और अनियमित वर्षा का दुष्प्रभाव पूरा राज्य झेल चुका है। खेती-किसानी और खाद्य पदार्थों की उपज पर तो उसका असर पड़ा ही, बहुत सारी जगहों पर पीने के पानी के लिए भी तरस गए लोग। जंगल-पहाड़ों और नदियों-झरनों के इस राज्य के किसी न किसी भाग में प्राय: हर साल कम से कम आंशिक सूखे की नौबत आकर बार-बार आगाह करती रही है कि पानी का महत्व समझा जाय लेकिन यही नहीं होता। वर्षा होने पर पठारी क्षेत्र की प्रकृति के अनुसार बर्बादी और किसी हद तक तबाही का दृश्य उपस्थित हो जाता है। यह हालांकि मैदानी क्षेत्र की तरह लंबा प्रभाव नहीं डालता लेकिन साथ ही अल्प समय में ही सारा पानी गायब भी हो जाता है। वह या तो भूगर्भ में समा जाता है या बहकर समुद्र में चला जाता है। तेज बहाव के कारण बहुत कुछ नष्ट कर जाता है। इसलिए जहां तक संभव हो सके निजी तौर पर तो वर्षा जल के संरक्षण की कोशिश करनी ही चाहिए, सरकार को इस पर मिशन मोड में अमल करने की नीति तैयार करनी चाहिए।

राज्य सरकार ने बेशक डोभा बनाकर जल संरक्षण का एक अच्छा रास्ता अख्तियार किया लेकिन यह न तो काफी है, न ही वास्तविक निदान है। वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट घर-घर में होना आवश्यक है, जबकि सभी सरकारी दफ्तरों में भी यह नहीं है। शृंखला चेकडैम बनाने की नीति पर पूरी तरह अमल नहीं हो पाना सरकारी कार्यशैली की खामियां बता रहा है। राज्य में नदी जोड़ो योजना को परवान चढ़ाया जाय तो वह भी परिणामदायी होगा। झारखंड में पंजाब, हरियाणा जैसे समृद्ध राज्यों से अधिक वर्षा होती है, लेकिन इसका पूरा फायदा नहीं उठाया जा रहा। जल संरक्षण की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने और पानी के प्रति जनजागरूकता के अभाव के कारण केवल इसकी कमी या इसके आतंक का रोना रोया जा सकता है। इस राज्य की यही नियति बन गई है। झारखंड से मिलते-जुलते भौगोलिक परिवेश वाले आंध्रप्रदेश में की गई जल संरक्षण की व्यवस्था ने वहां के लोगों को काफी हद तक खुशहाल बना रखा है। उस मॉडल पर भी काम किया जा सकता है। इसके अलावा वैज्ञानिकों को भी इस दिशा में तत्परता पूर्वक ऐसा उपाय ढूंढना चाहिए, जिस पर अमल कर राज्य वर्षा जल के अधिकतम अंश का संरक्षण और उपयोग कर सके। ऐसा होने पर एक तो भूगर्भ का जल-स्तर संतोषजनक रहेगा, दूसरे पर्यावरण बेहतर बना रहेगा और पीने के पानी की कौन कहे, सिंचाई और उद्योगों के लिए भी जल समस्या नहीं रहेगी।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]