-----सवाल है क्या बीस करोड़ आबादी वाले प्रदेश की स्वास्थ्य प्रणाली इतनी सक्षम है कि नशे के शिकार हर मरीज का यहां उपचार हो सके। -----मुंह और गले में होने वाले कैंसर का मूल कारण तंबाकू का सेवन है। हर साल इस कैंसर की वजह से न जाने कितनी जानें चली जाती हैं। बावजूद इसके लोग जागरूक नहीं हो रहे। सरकारी आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में 49 फीसद पुरुष तंबाकू का किसी न किसी रूप में सेवन करते हैं। 17 फीसद महिलाएं भी तंबाकू खाती हैं। राज्य तंबाकू नियंत्रण प्रकोष्ठ का कहना है कि भारत सरकार द्वारा हाल ही में जारी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के अनुसार गैर संक्रामक रोगों से होने वाली असामयिक मृत्युदर को वर्ष 2025 तक 25 फीसद तक कम करने का लक्ष्य रखा गया है। इनमें हृदय रोग और पक्षाघात, कैंसर, दीर्घकालिक सांस रोग प्रमुख हैं। यह रोग तंबाकू सेवन से बढ़ते हैं। तंबाकू से होने वाले रोगों और मृत्यु को रोकना है तो ऐसा हर व्यक्ति जो तंबाकू सेवन कर रहा है, उसको नशा उन्मूलन में मदद मिलनी चाहिए ताकि वह नशे से छुटकारा पा सके। हर उस व्यक्ति को जिसमें तंबाकू जनित जानलेवा रोगों के प्रारंभिक लक्षण हों जांच और इलाज की सुविधा मिलनी चाहिए। सवाल है क्या बीस करोड़ आबादी वाले प्रदेश की स्वास्थ्य प्रणाली इतनी सक्षम है कि नशे के शिकार हर मरीज का यहां उपचार हो सके। क्या यहां के अस्पतालों में इतने डॉक्टर व संबंधित स्टाफ हैं जो एक-एक मरीज को पर्याप्त समय देकर उनका उपचार कर सकें। यह सच है कि तंबाकू से होने वाली बीमारियों को लेकर हम अभी उतने सजग नहीं हुए हैं जितना होना चाहिए। स्वास्थ्य विभाग भी इन रोगों के रोकथाम को लेकर पर्याप्त संसाधन नहीं जुटा पाया है। अब भी मुंह और गले के कैंसर की बीमारियों का इलाज प्राय: महानगरों में ही हो पाता है। छोटे शहरों में इन बीमारियों को शुरुआती स्तर पर पहचानने के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं हैं। गांव-कस्बे के लोगों को भी लंबी दूर तय कर और बस-ट्रेन में धक्के खाकर दूर शहर की दौड़ लगानी पड़ती है। वहां सरकारी अस्पतालों में लंबी लाइन लगाने के झंझट से भी जूझना पड़ता है। ऐसे में सरकारी अस्पतालों में संसाधन और जुटाने की आवश्यकता है ताकि तंबाकू की गिरफ्त से छूटने वालों को राहत मिल सके।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]