राज्य के शिक्षामंत्री अशोक चौधरी और सांसद पप्पू यादव की सुरक्षा में कटौती पर दोनों व्यक्तियों का विचलित होना स्वाभाविक है। गृह मंत्रालय की किसी समिति की संस्तुति पर इनकी सुरक्षा कम की गई है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इन दोनों विशिष्टजनों को किस खतरे की आशंका के आधार पर सुरक्षा मुहैया कराई गई थी? क्या वह खतरा अब नहीं रहा? देश के सामने नक्सली और पाकिस्तानी आतंकवाद की चुनौतियां हैं। इनसे निपटने में अर्द्धसैनिक बल तमाम शहादत देकर वंदनीय योगदान दे रहे हैं। ऐसे बल को प्रामाणिक और वास्तविक आवश्यकता के बगैर किसी वीआइपी की सुरक्षा या अन्य कार्य में तैनात करना देश के प्रति घात है। दरअसल, वीआइपी सुरक्षा का मामला सुरक्षा से ज्यादा स्टेटस सिंबल बन चुका है। बड़ी संख्या में अर्द्धसैनिक बल और पुलिस के जवान हर स्तर के नेताओं की सुरक्षा में तैनात रहते हैं जबकि वास्तव में इनमें अधिसंख्य नेताओं की सुरक्षा को कोई खतरा नहीं होता। अक्सर देखा जाता है कि वीआइपी के सुरक्षाकर्मी उनके बच्चों को स्कूल छोडऩे-लेने जा रहे, उनके लिए सब्जी-मिठाई खरीद रहे, उनके रिश्तेदारों की आवभगत कर रहे, उनके कपड़े लॉन्ड्री में पहुंचा रहे। यानी सुरक्षाकर्मी वीआइपी परिवार के सेवक की भूमिका में रहते हैं। यह अफसोसजनक है। सुरक्षाबलों का अपमान है। वैसे अर्द्धसैनिक बलों की स्थिति थोड़ा अलग है। वे पुलिसकर्मियों की तरह वीआइपी के घर का कामधाम तो नहीं करते लेकिन ज्यादातर मामलों में उनकी तैनाती अतार्किक आधार पर की जाती है। उच्च श्रेणी का सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त अर्द्धसैनिक बलों की पहली और अंतिम जिम्मेदारी देश की आंतरिक सुरक्षा है। इसके लिए जितने बल की आवश्यकता है, उसके मुकाबले जवानों की संख्या कम है। इसके बावजूद बड़ी संख्या में जवानों को नेताओं की सुरक्षा जैसे कार्यों में लगाया जा रहा है। सुरक्षा संवेदनशील विषय है। हर व्यक्ति की सुरक्षा अहम है। सरकार की जिम्मेदारी है कि सबको सुरक्षा दे लेकिन इसकी नीति पारदर्शी होनी चाहिए। इस बात का जवाब शायद ही कोई दे सके कि सत्तारूढ़ दल के नेताओं और कार्यकर्ताओं को ही सुरक्षा की जरूरत क्यों महसूस होती है? बेहतर होगा कि केंद्र से लेकर राज्य तक वीआइपी सुरक्षा की एक सुस्पष्ट नीति बने तथा जरूरतमंदों को सुरक्षा मुहैया कराने के लिए एक स्वतंत्र सुरक्षाबल गठित किया जाए। सैन्य और अर्द्धसैन्य बल देश की हिफाजत के लिए हैं। उन्हें उनका काम करने दिया जाए।
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खुद को महत्वपूर्ण दर्शाने के लिए अर्द्धसैन्य बल के जवानों का सुरक्षा कवच रखना अनुचित है। सुरक्षा तर्कपूर्ण आधार पर दी जानी चाहिए। इसके निर्धारण की सुस्पष्ट नीति होनी चाहिए। बेहतर होगा कि जरूरतमंदों को सुरक्षा कवच उपलब्ध कराने के लिए एक स्वतंत्र सुरक्षा बल गठित किया जाए।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]