अफवाहों के सिर-पांव नहीं होते। यह आग की तेजी से फैलती है और आपाधापी में इस पर हुई प्रतिक्रिया का अंजाम भी गलत ही होता है। उपद्रवी ऐसे ही मौके की ताक में रहते हैं और हिंसा फैलाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। जमशेदपुर के बागबेड़ा और उससे सटे सरायकेला-खरसावां के राजनगर में गुरुवार को कुछ ऐसी ही घटना को सिरफिरे लोगों की भीड़ ने अंजाम दिया। दोनों स्थानों पर मिलाकर कुल सात लोग हिंसा की भेंट चढ़ गए। इस घटना की तस्वीरें सभ्य समाज पर सवाल खड़े करती हैं। मध्ययुगीन बर्बरता को मात देती ऐसी तस्वीरें जंगलराज की याद दिलाती हैं।

कानून के राज में ऐसी घटनाएं शासन तंत्र पर तमाचा है। अनियंत्रित भीड़ बेकसूर लोगों को मौत के घाट उतारती रही और पुलिस ने तत्काल कार्रवाई करने का साहस नहीं जुटाया। हर बार की तरह घटना के बाद सतर्कता बरतने की हिदायतें जारी की जा रही हैं। आखिरकार शासन का खुफिया तंत्र कारगर क्यों नहीं दिखता? पुलिस मुख्यालय ने इसे गंभीरता से लिया है। मुख्यमंत्री के स्तर से जांच का आदेश दिया गया है लेकिन जिन परिवारों ने इस हादसे में अपनों को खोया, क्या उसकी भरपाई हो पाएगी? पुलिस इन घटनाओं की जांच कर वैसे लोगों को चिह्न्ति करे जिन्होंने हिंसा को भड़काया। इस दौरान वाहन आग के हवाले कर दिए गए। अनियंत्रित भीड़ ने कानून अपने हाथ में लेकर उपद्रव फैलाया। पुलिस को सतर्कता दिखाते हुए तत्काल कार्रवाई करनी होगी। जो दोषी हैं, उन्हें सलाखों के पीछे करना चाहिए। राज्य के अन्य हिस्सों में भी पूर्व में ऐसी घटनाएं हो चुकी है। इन्हें राजनीतिक नफा-नुकसान के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। अगर किसी प्रकार की गड़बड़ी हो रही है अथवा कोई शख्स गैर-कानूनी काम करने का प्रयास कर रहा है तो तत्काल पुलिस को सूचित करना चाहिए।

पुलिस की जिम्मेदारी होगी कि वह फौरी जांच कर कानून-व्यवस्था को प्रभावित कर रहे लोगों को दंडित कराए। इसका यह उपाय कतई नहीं है कि भीड़ कानून को ही अपने हाथ में लेकर सजा मुकर्रर कर दे। जिन पुलिस पदाधिकारियों ने भी उपद्रव के दौरान भीड़ को नियंत्रित करने में उदासीनता बरती, उनकी भी जिम्मेदारी तय हो। जांच होगी तो घटना के लिए जिम्मेदार लोग सलाखों के पीछे होंगे। आम लोगों से भी आग्रह है कि अफवाह पर कतई विश्वास नहीं करें। संवेदनशीलता से काम लें और कानून को अपने हाथ में लेने की गलती कतई नहीं करें। सभ्य समाज में बर्बरता और हिंसा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।

[स्थानीय संपादकीय : झारखंड]