ब्लर्ब :
-हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में हिंसा हर साल बढ़ती जा रही है। शिक्षा के मंदिर में छात्रों का यह हुड़दंग हिमाचल की संस्कृति से मेल नहीं खाता है।

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला में हिंसक घटना होना नई बात नहीं है। कुछ महीने शांति के बाद विश्वविद्यालय के छात्रावास और परिसर खूनी झड़प के गवाह बनते हैं। ज्यादातर झड़पों में कुछ बातें एक समान रहती हैं जैसे छात्रों का टकराव एसएफआइ व एबीवीपी के बीच होता आया है। बहुत कम बार ऐसा हुआ होगा कि झड़प में इन दोनों छात्र संगठनों में से किसी का नाम नहीं आया। एक बात और है कि जब भी छात्रों में भिड़ंत होती है तो पहले इसके लिए जमीन बनती है। शुरुआत छोटी-मोटी धक्का-मुक्की और तू-तू मैं-मैं से होती है। बड़ा खून-खराबा उसके बाद देखने को मिलता है। इस बार भी ऐसा ही हुआ। पहले हिंसा की छोटी घटना हुई। अगले दिन नौबत अस्पताल पहुंचने की आ गई। ऐसी घटनाओं से प्रदेश विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली संदेह के घेरे में आ रही है। जब छात्र लड़ रहे थे, उस समय वार्डन छात्रावासों में क्यों नहीं पहुंचे। ज्यादा परेशानी आम छात्रों को हुई, जो लड़ाई-झगड़ों से दूर पढऩे के लिए आते हैं। ऐसे छात्रों ने खुद को कमरों में बंद करके जान बचाई। जब घायलों को इलाज के लिए इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल ले जाया गया तो वहां भी पथराव हुआ। पिछली बार नैक टीम के दौरे के बीच हिंसक घटना हुई थी। इसके बावजूद प्रदेश विश्वविद्यालय को ग्रेड बढऩे का इनाम मिला था। विश्वविद्यालय प्रशासन ने पिछली घटनाओं के बाद सख्ती के संकेत दिए थे। इसी सख्ती के कारण छात्रावासों में हथियार, रॉड व डंडे बरामद किए गए थे मगर हैरानी है कि दोबारा हथियार कैसे पहुंच गए? सवाल यह है कि क्या यह हिंसा ढील की वजह से तो नहीं हो रही? जब पहले दिन टकराव हो चुका था तो उसके बाद एहतियात क्यों नहीं बरती गई? पहली झड़प के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन व पुलिस के स्तर पर चुस्ती दिखाई जाती तो बड़े खून-खराबे से बचा जा सकता था। वैसे भी पुराना अनुभव देखें तो नया सत्र शुरू होने पर ऐसी झड़पें होती रही हैं और ऐसा बीते वर्षों में हुआ है। विश्वविद्यालय प्रशासन और राज्य सरकार ने छात्रों के खून-खराबे से बचने के लिए ही केंद्रीय छात्र संघ के प्रत्यक्ष चुनाव पर प्रतिबंध लगा रखा है। छात्र संगठनों के प्रतिनिधियों को यह लालच भी दिया गया है कि वे लड़ेंगे नहीं तो ही एससीए के प्रत्यक्ष चुनाव करवाए जाएंगे। ताजा हिंसा के बाद ऐसा नहीं लग रहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन ङ्क्षहसा रोकने के अपने मकसद में कामयाब हो रहा है।

[  स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश  ]