राज्य की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए उपलब्ध संसाधनों के इस्तेमाल को लेकर सजग होने की दरकार है। केंद्र से मिल रही मदद का सदुपयोग हुआ तो राज्य की सूरत में बदलाव तय है।
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राज्य के अवस्थापना विकास को रफ्तार देने के लिए एक बार फिर केंद्रपोषित और बाह्य सहायतित योजनाओं से उम्मीदें बांधी गई हैं। ऐसा स्वाभाविक ही है। राज्य के सालाना बजट आकार में इन योजनाओं के जरिए मिलने वाली केंद्रीय इमदाद की बड़ी हिस्सेदारी रही है। ब्लॉक ग्रांट्स के तौर पर मिलने वाली केंद्रीय मदद पर चौदहवें वित्त आयोग की सिफारिशों के बाद कैंची चल चुकी है। राहत की बात ये है कि उत्तराखंड समेत तमाम हिमालयी राज्यों को केंद्रपोषित और बाह्य सहायतित योजनाओं में विशेष तरजीह दी जा रही है। हालांकि, ये भी सच है कि लंबे अरसे से विशेष दर्जे के तौर पर राज्य केंद्रपोषित और बाह््य सहायतित योजनाओं में मिलने वाली ज्यादा मदद का उपयोग अपेक्षा के अनुरूप नहीं कर पाया है। यह चिंताजनक तो है ही, इससे राज्य में अब तक की सरकारों और नौकरशाहों की भूमिका पर भी सवाल खड़े होते हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, बिजली, सिंचाई, कृषि, पशुपालन समेत अवसरंचनात्मक विकास को केंद्र की कई महत्वाकांक्षी योजनाएं चल रही हैं। राज्य को कई योजनाओं में केंद्रीय अनुदान के रूप में 90 फीसद धनराशि मिल रही है। केंद्रीय योजनाओं की धनराशि का इच्छाशक्ति के साथ सही उपयोग किया गया होता तो कई क्षेत्रों में राज्य की मौजूदा स्थिति में सकारात्मक बदलाव नजर आ सकती थी। लेकिन विशेष आयोजनागत सहायता और विशेष केंद्रीय मदद के रूप में मिली एकमुश्त मदद का भी उपयोग ठीक ढंग से नहीं हो पाया। इस वजह से करोड़ों रुपये की दूसरी किस्त के लिए राज्य अब तक तरस रहा है। केंद्र से पहली किस्त के रूप में प्राप्त धनराशि को खर्च करने के बाद उपयोगिता प्रमाणपत्र मुहैया कराने में सरकार और उसके महकमों के हाथ-पांव फूल रहे हैं। ये सरकारी तंत्र की लापरवाही का उदाहरण है। अब केंद्र और राज्य में एक ही दल की सरकारें होने के बाद उम्मीद की जा सकती है कि केंद्र से मिलने वाली मदद में वृद्धि होगी। साथ में इस मदद का राज्य बेहतर ढंग से इस्तेमाल कर सकेगा। वैसे भी राज्य के अपने स्रोतों से जुटने वाले राजस्व और केंद्रीय मदद का बड़ा हिस्सा गैर विकास मदों पर खर्च हो रहा है। विकास कार्यों के लिए धन की उपलब्धता महज 14 फीसद तक सिमट गई है। सरकार आय के साधनों में इजाफा नहीं कर पा रही है। ऐसे में केंद्रपोषित और बाह्य सहायतित योजनाओं का सदुपयोग शीर्ष प्राथमिकता होनी ही चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]