यह समझना कठिन है कि जो सुप्रीम कोर्ट बैंक खाते खोलने और इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करने में आधार कार्ड के इस्तेमाल को सही मान रहा है वही कल्याणकारी योजनाओं में उसके प्रयोग को अनिवार्य बनाए जाने के खिलाफ दलील क्यों दे रहा है? यदि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के चलते सरकार की कल्याणकारी योजनाओं में आधार का इस्तेमाल ऐच्छिक ही बना रहा तो फिर कुछ लोग यही चाहेंगे कि यही स्थिति कायम रहे और ऐसा होने का मतलब है सरकारी धन के बंदरबाट की गुंजाइश बने रहना। कोई भी इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकता कि सब्सिडी वितरण में आधार का इस्तेमाल करने से करोड़ों रुपये के धन की बचत हुई है। यह बचत इसीलिए संभव हो सकी, क्योंकि आधार के इस्तेमाल से फर्जी लाभार्थियों पर अंकुश लगाने के साथ ही अपात्र लोगों को सरकारी सहायता हासिल करने से रोका जा सका। जब सरकार बार-बार यह आश्वासन दे रही है कि सभी को आधार से लैस किए बगैर जनकल्याणकारी योजनाओं में इस विशिष्ट पहचान पत्र संख्या को अनिवार्य नहीं बनाया जाएगा तब फिर यही सुनिश्चित करने की जरूरत रह जाती है कि आधार कार्ड सभी को मिले। इस क्रम में यह भी देखा जाना चाहिए कि फिलहाल आधार कार्ड से वंचित लोग सरकारी सहायता हासिल करने में समर्थ रहें। यह समझ आता है कि गरीब एवं अशिक्षित तबके के लोग इसके प्रति चिंतित हों कि आधार न होने के कारण वे सरकार की कल्याणकारी योजना के लाभ से वंचित न हों, लेकिन आखिर इसका क्या औचित्य कि तमाम साधन संपन्न एवं पढ़े-लिखे आधार का विरोध करने में लगे हुए हैं। इन लोगों की दलील यह है कि आधार का विवरण चोरी हो सकता है और इस कार्ड को हर योजना में अनिवार्य बनाकर सरकार लोगों की जासूसी कर सकती है। यह घिसी-पिटी दलील है और इसका मकसद महज विरोध के लिए है।
ऐसा लगता है कि विरोधी दलों के नेताओं और खासकर कांग्रेस को यह पच नहीं रहा कि मोदी सरकार ने आधार का कहीं अधिक बेहतर ढंग से इस्तेमाल कर दिखाया है। ध्यान रहे कि एक समय जब भाजपा विपक्ष में थी तब वह भी आधार के इस्तेमाल को लेकर मीन-मेख निकाला करती थी। राजनीतिक दलों का यह व्यवहार नया नहीं कि वे एक ही मसले पर सत्ता और विपक्ष में रहते समय अलग-अलग रवैया अपनाते हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से यही अपेक्षित है कि वह विभिन्न सरकारी योजनाओं में आधार के ऐच्छिक इस्तेमाल से होने वाले परेशानियों के बारे में नए सिरे से विचार करे। किसी भी योजना में ऐच्छिक का विकल्प एक तरह से यथास्थिति बनाए रखने का जरिया है। यह निराशाजनक है कि जब करोड़ों पात्र लोगों को सरकारी योजनाओं का सही तरह से लाभ देने के मामले में आधार ने एक शानदार उपलब्धि हासिल की है तब सुप्रीम कोर्ट इस पर जोर दे रहा है कि उसे अनिवार्य न बनाया जाए। बेहतर हो कि सुप्रीम कोर्ट यह समझे कि आधार के मामले में उसके रुख से असहमति जाहिर करने के पर्याप्त आधार हैं। विभिन्न सेवाओं और योजनाओं में आधार का इस्तेमाल बढ़ाना समय की मांग और जरूरत है। इस जरूरत की पूर्ति आधार को ऐच्छिक बनाए रखकर नहीं की जा सकती।

[ मुख्य संपादकीय ]