अलग राज्य गठन के बाद झारखंड के दर्जनों कस्बाई इलाकों का तेजी के साथ शहरीकरण हुआ है। राज्य की कुल आबादी का 24.05 फीसद हिस्सा शहरी क्षेत्र में निवास कर रहा है, जिसमें सालाना 2.3 फीसद की दर से वृद्धि हो रही है। राज्य में छोटे-मंझोले शहरों की मौजूदा संख्या 228 है, जिनमें से महज 42 शहरों को ही नगर निकाय का दर्जा मिल सका है। इधर, 2011 की जनगणना में 188 नए सेंसस टाउन चिह्नित किए गए हैं। ये ऐसे इलाके हैं, जिसकी आबादी आज से लगभग सात-आठ साल पहले पांच हजार से अधिक परंतु 12 हजार से कम थी। 12 हजार की आबादी पार करते ही संबंधित इलाके भी शहर के दायरे में आ जाएंगे। यह बात अलग है कि जबतक सरकार इन इलाकों को अधिसूचित नहीं करती, उसे शहरी सुविधाएं नहीं मिल सकेंगी। यहां यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कस्बाई इलाकों का तेजी से हो रहा शहरीकरण सरकार के लिए परेशानियों का सबब ही है। झारखंड के कस्बाई इलाकों का हो रहे शहरीकरण को लेकर हुए हालिया शोध चौंकाने वाले हैं। शहर का स्वरूप धारण कर रहे कस्बाई इलाकों की आबादी में जो सालाना 2.3 फीसद के हिसाब से वृद्धि हो रही है, उनमें लगभग 93 फीसद हिस्सेदारी ग्रामीणों की है। ग्रामीणों की यह आबादी उग्रवादियों के भय, आजीविका के कम होते संसाधन तथा आधारभूत संरचनाओं की कमी को लेकर शहरों का रुख कर रही है। शेष सात फीसद ऐसी फ्लोटिंग आबादी है, जो बाहर के प्रदेशों की है। आशय यह है कि झारखंड के गांवों से तेजी के साथ शहरी क्षेत्र की ओर ग्रामीणों का स्थाई पलायन हो रहा है। इससे इतर रोजी-रोटी की तलाश में दूसरे प्रदेशों के लिए स्थाई के साथ-साथ लाखों युवक-युवतियों का मौसमी पलायन हो रहा है। गांवों से बड़े पैमाने पर हो रहे पलायन और शहरों पर बढ़ता दबाव, दोनों ही स्थितियों को अच्छा नहीं कहा जा सकता। बुनियादी सुविधाओं के मामले में राज्य के अधिसूचित शहरों के हालात खुद ही अच्छे नहीं हैं, ऐसे में तेजी से उभरते इलाकों को शहर सी सुविधाएं प्रदान करना टेढ़ी खीर ही होगा। दूसरी ओर गांव गिरांव से जिस रफ्तार से युवक-युवतियों का पलायन हो रहा है, उसका प्रतिकूल असर खेती-किसान पर पड़ रहा है। बहरहाल इस दोहरी चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार को गंभीर मंथन करने की जरूरत है, ताकि आबादी की दृष्टि से गांव और शहर के बीच संतुलन बना रहे। इसके लिए जरूरी है कि गांवों में भी शहर के समरूप सुविधाएं मुहैया कराई जाएं, आजीविका के बेहतर संसाधन विकसित किए जाएं, शिक्षा-दीक्षा, स्वास्थ आदि की बेहतर सुविधा बहाल की जाए, ताकि पलायन के इस सिलसिले पर विराम लग सके और गांव-शहरों के बीच का संतुलन बना रहे।
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कस्बाई इलाकों का हो रहे शहरीकरण को लेकर हुए शोध चौंकाने वाले हैं। इन इलाकों की आबादी में लगभग 93 फीसद हिस्सेदारी ग्रामीणों की है।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]