वैसे तो इस बार पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए, लेकिन उत्तर प्रदेश का चुनाव परिणाम विशेषकर बिहार के लिए कई संदेश दे गया। उसकी हलचल साफ देखी जा सकती है। चर्चा का बाजार भी गर्म रहा। गौर करें तो वर्तमान महागठबंधन सरकार का भविष्य भी लोग तय करते दिखे। राजनीतिक गलियारे में भी जिस तरह के बयान आए, लोगों ने उसका अपने हिसाब से मायने समझा। सबसे तीखा बयान राजद के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह का रहा। उनके बयान से एकबारगी ऐसा लगा, यूपी में भाजपा की अप्रत्याशित जीत के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिम्मेदार हैं। राजद नेता ने सीधा आरोप लगाते हुए कहा कि यूपी में भाजपा और जदयू ने मैच फिक्स कर लिया था। इसके पीछे उनका तर्क है कि चुनाव के पूर्व नीतीश कुमार यूपी के चुनावी समर में कूदने के लिए व्यापक तैयारी में जुटे थे। चुनाव की तिथियों की घोषणा होते ही चुप्पी साध ली। ऐसा लगा था नीतीश बिहार की तरह ही यूपी में धर्मनिरपेक्ष ताकतों के साथ रहेंगे। बिहार की तरह ही गोलबंदी करेंगे। राजद नेता ने यहां तक कह दिया कि धर्मनिरपेक्ष ताकतों को नीतीश कुमार से सतर्क रहना चाहिए। हालांकि राजद नेता के इस बयान की निंदा भी हुई। कांग्र्रेस ने इसे गैरजिम्मेदारी भरा बयान बताया है। कहा कि राजद को ऐसे नेता को पार्टी से निकाल देना चाहिए। जदयू ने भी राजद प्रमुख लालू प्रसाद से रघुवंश प्रसाद को पार्टी से बर्खास्त करने की मांग की। हालांकि राजद की ओर से इस संबंध में कोई बयान नहीं आया। ऐसा पहले भी होता रहा है। रघुवंश प्रसाद के बयान पर राजद की ओर से या तो कोई बयान नहीं आता या फिर उसे उनका निजी बयान बताया जाता रहा है। इस बयान को लेकर बात आगे बढ़े या नहीं, एक सवाल तो जरूर उठता है कि क्या वाकई राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष इतने अगंभीर नेता हैं, जिनकी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए। राजनीतिक पंडित ऐसे बयानों और उसपर पार्टी की चुप्पी को बेहतर आंक सकते हैं। नीतीश कुमार की मानें तो नोटबंदी पर कड़ा विरोध भाजपा विरोधी दलों की हार की प्रमुख वजह है। नोटबंदी पर पिछड़े वर्गों के एक बड़े तबके ने भाजपा को समर्थन दिया। गैर भाजपा दलों ने इस तबके को जोडऩे का प्रयास नहीं किया। गौरतलब है कि नीतीश कुमार ने नोटबंदी का समर्थन किया था और बाद में उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार से इसके फलाफल का हिसाब भी मांगा था। यूपी में भाजपा की अप्रत्याशित जीत के और कई फैक्टर हैं, जिसकी समीक्षा खुद भाजपा भी कर रही है, लेकिन इतना तय है कि परिणाम ने बिहार को भी बहुत कुछ विचारने का टास्क दे दिया है।
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हाईलाइटर
यूपी विधानसभा के चुनाव परिणाम ने बिहार में भी हलचल पैदा कर दी है। भाजपा खुद इस अप्रत्याशित जीत की समीक्षा में जुटी है। काम बोलता है, नाम बोलता है या फिर कुछ और बोलता है, बिहार को भी इसकी गहन समीक्षा करने की जरूरत है।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]