राज्य के मतदाताओं ने अभूतपूर्व जनादेश देते हुए भाजपा को भारी बहुमत के साथ सत्ता तक पहुंचाया है। अब नई बनने जा रही सरकार पर जनमत की अपेक्षाओं के मुताबिक बेहतर प्रदर्शन कर सुशासन देने की चुनौती है।
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देवभूमि उत्तराखंड की प्रबुद्ध और जागरूक जनता ने आखिरकार ऐतिहासिक जनमत दे दिया। चौथी विधानसभा के लिए हुए चुनाव में मतदाताओं ने अबकी बार भाजपा पर सिर्फ भरोसा ही नहीं जताया, बल्कि तीन-चौथाई से ज्यादा सीटें सौंप दी हैं। पहली बार किसी दल को इसतरह प्रचंड बहुमत मिला है। जनादेश ने साबित कर दिखाया है कि राज्य की जनता बार-बार राजनीतिक अस्थिरता से तंग आ चुकी है। बार-बार पैदा होने वाली इस अस्थिरता ने राज्य के विकास में अवरोध तो पैदा किए ही, छवि को भी नुकसान पहुंचाया है। पिछले दो विधानसभा चुनावों में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। बहुमत के अभाव में दोनों ही सरकारों का संतुलन डगमगाता रहा। सियासी महत्वाकांक्षाओं का नतीजा रहा कि 16 साल के अंतराल में राज्य को सात मुख्यमंत्री झेलने को विवश होना पड़ा। पिछली विधानसभा के दौरान तो राज्य में अस्थिरता अपने चरम पर पहुंची और बगावत के चलते सरकार को संकट से जूझना पड़ा। यह जनादेश अस्थिरता पर मतदाताओं के प्रहार के रूप में सामने आया है। उच्च साक्षरता दर में देश के गिने-चुने राज्यों में शुमार उत्तराखंड का ये जनमत कई मायनों में खास है। हालांकि, राज्य की 70 सीटों पर कुल मतदान पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में कम हुआ है, लेकिन इस बार पर्वतीय क्षेत्रों से लेकर तराई के क्षेत्रों में भी महिला मतदाताओं ने पुरुषों की तुलना में अधिक मतदान किया। नतीजा राजनीतिक अस्थिरता खत्म होने के रूप में सामने आया। भाजपा ने तराई के क्षेत्रों के साथ ही पर्वतीय क्षेत्र में कांग्रेस के परंपरागत गढ़ों में भी अच्छा प्रदर्शन किया है। चुनाव नतीजे भाजपा के लिए खुशियों का पिटारा साबित हुए हैं, लेकिन साथ ही राज्य में नई बनने जा रही भाजपा सरकार के सामने जन अपेक्षाओं के पहाड़ से जूझने की चुनौती भी है। नई सरकार ऐसे मौके पर राज्य की बागडोर संभाल रही है, जब सरकारी खजाना अच्छी स्थिति में नहीं है। गैर विकास मदों में खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है। हालत ये ही विकास कार्यों के लिए धन की उपलब्धता कम है। सीमित संसाधनों के चलते सरकार को वेतन-भत्तों और पेंशन के खर्च से निपटने को मशक्कत करनी पड़ रही है। बाजार से उधार लेकर वेतन-पेंशन का भुगतान किया जा रहा है। सरकार के सामने सीमित संसाधनों को बढ़ाने के साथ ही मुहंबाए खड़ी बेरोजगारी से निपटने और रोजगार के अवसर पैदा करने की चुनौती है। ऊर्जा, पर्यटन, बागवानी और जड़ी-बूटी जैसे क्षेत्रों में विकास की अपार संभावनाएं होने के बावजूद बीते 16 सालों में इस दिशा में ठोस काम नहीं हो सका। उम्मीद की जानी चाहिए कि दो तिहाई से अधिक बहुमत वाली नई सरकार राज्य की ज्वलंत समस्याओं और चुनौती से ठोस रोडमैप बनाकर निपटने की गंभीरता से कोशिश करेगी।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]