चंडीगढ़ स्थित पंजाब यूनिवर्सिटी में मंगलवार को जो कुछ भी हुआ वह निस्संदेह दुर्भाग्यपूर्ण है। यहां फीस वृद्धि के विरोध में विभिन्न छात्र संगठनों ने यूनिवर्सिटी प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। विगत कई दिनों से छात्रों ने इस मुद्दे पर आक्रामक रुख अपना रखा था और गत दिवस भी करीब चार घंटे तक अलग-अलग जगह प्रदर्शन किया। पूरे पीयू कैंपस में जमकर हंगामा हुआ और छात्रों की पुलिस के साथ धक्का-मुक्की भी हुई। मंगलवार को स्थिति विस्फोटक हो गई और छात्रों व पुलिस के बीच टकराव ने ङ्क्षहसक रूप धारण कर लिया। पीयू जैसे संस्थान में ऐसी घटना सिर्फ चंडीगढ़ ही नहीं, अपितु पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर व हिमाचल प्रदेश के लिए भी चिंता का विषय है, क्योंकि इन सभी प्रदेशों से बड़ी संख्या में छात्र यहां शिक्षा ग्रहण करने आते हैं। हैरत इस बात की भी है कि जब मामला इतने दिनों से चल रहा था और विरोध के स्वर लगातार बुलंद हो रहे थे तो फिर इसे रोकने के लिए जितनी सतर्कता बरती जानी चाहिए थी, उतनी क्यों नहीं बरती गई? खासतौर पर जब सोमवार को ही स्थिति विस्फोटक हो गई थी, तो फिर यूनिवर्सिटी प्रशासन ने समय रहते छात्रों के साथ मिल-बैठकर समस्या का हल निकालने की कोई ठोस पहल क्यों नहीं की? आखिर क्यों हालात इस कदर बिगडऩे दिए गए कि छात्रों पर लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले छोडऩे की स्थिति पैदा हुई? यह भी विचारणीय है कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो छात्रों पर देशद्रोह का मामला दर्ज कर उसे वापस लेना पड़ा। निस्संदेह इन सवालों के जवाब पीयू प्रशासन व पुलिस को देने होंगे। बात यहां तक बढ़ती ही नहीं, यदि समय रहते समस्या के मूल को समझकर उसे सुलझाने का प्रयास किया गया होता। इससे न सिर्फ शहर की कानून व्यवस्था पर संकट गहराया है, अपितु विद्यार्थियों की पढ़ाई भी बाधित हो रही है। यह ठीक है कि यूनिवर्सिटी प्रशासन के पास फीस वृद्धि का अधिकार है, लेकिन कुछ विषयों में दो सौ से चार सौ फीसद तक की वृद्धि को कतई तार्किक नहीं कहा जा सकता। छात्र संगठनों को भी संयम बरतना चाहिए। यह पीयू प्रशासन और छात्र संगठनों की सामूहिक जिम्मेदारी है कि यूनिवर्सिटी की प्रतिष्ठा कायम रखें, इसलिए इस समस्या का जितना शीघ्र हो सके सर्वमान्य हल निकालना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : पंजाब ]