चंपारण सत्याग्रह शताब्दी आयोजन, खासकर इस क्रम में देशभर के स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित करने के शुभ प्रयोजन पर अंतत: कटुतापूर्ण राजनीति की थोड़ी छाया पड़ ही गई। राष्ट्रपति, राज्यपाल तथा स्वतंत्रता संग्राम के योद्धाओं की मौजूदगी में राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने महागठबंधन राजनीति तथा आरक्षण जैसे मुद्दे उठाकर भाजपा को यह कहने का मौका दे दिया कि सम्मान समारोह के 'राजनीतिकरण' का उनका आकलन सही था अन्यथा इस मंच पर भाजपा को लक्ष्य करके आरक्षण और महागठबंधन के मुद्दे उठाने का क्या मकसद था? राजद प्रमुख देश के बड़े नेताओं में एक हैं। ऐसे समारोह के मंच पर उनसे कहीं अधिक धैर्य और गरिमा की अपेक्षा की जाती थी। धैर्य दिखाया नीतीश कुमार ने। उन्होंने भाजपा के बारे में वह सब कुछ कहा, जो बाद में लालू प्रसाद बोले, लेकिन फर्क पैदा हुआ शब्दों और शैली से। राजद प्रमुख ने जिस आक्रामकता के साथ भाजपा पर हमला बोला, उसके लिए यह मंच और समय उपयुक्त नहीं था। भाजपा लालू प्रसाद की मंच पर मौजूदगी को मुद्दा बनाकर इस समारोह में शामिल नहीं हुई। लालू प्रसाद के भाषण ने भाजपा की आशंका सही साबित कर दी। यह बड़ा अवसर था। मंच पर राष्ट्रपति, राज्यपाल, मुख्यमंत्री और राहुल गांधी मौजूद थे। सबने महात्मा गांधी, चंपारण सत्याग्रह, आजादी और स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में बात की जबकि लालू प्रसाद के भाषण में गोडसे, महागठबंधन की स्थापना और आरक्षण जैसे मुद्दे शामिल रहे। बेशक राष्ट्रपति, राज्यपाल, स्वतंत्रता सेनानी और संभवत: मुख्यमंत्री भी राजद प्रमुख के शब्दों और शैली से असहज हुए होंगे। जहां तक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सवाल है, उन्होंने इस अभूतपूर्व आयोजन की कल्पना करते वक्त राजनीतिक दायरों को पीछे छोड़ दिया था अन्यथा वह राजनाथ सिंह सहित अन्य भाजपा नेताओं और राहुल गांधी को आमंत्रित ही क्यों करते? बहरहाल, इसके बावजूद दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से इस आयोजन पर राजनीति की छाया पड़ ही गई। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस घटना का प्रभाव उसी मंच पर समाप्त हो गया होगा। चंपारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह की शेष कडिय़ां योजनानुसार पूर्ण उत्साहपूर्वक आयोजित होंगी। शराबबंदी और गुरु गोविंद सिंह प्रकाशोत्सव के बाद इस आयोजन के जरिए भी बिहार की छवि को लेकर पूरे देश में एक सकारात्मक संदेश गया है। इसी के साथ दहेज और बाल विवाह विरोधी अभियानों से राज्य की छवि और निखरना तय है। राजनीतिक नेतृत्व को सिर्फ इतना ध्यान रखना है कि स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान समारोह मंच पर जैसी 'राजनीति' हुई, वह इन अभियानों में बाधा न बने।
....................................
हाईलाइटर ::
भाजपा पर 'हमला' बोलने के लिए असीमित अवसर उपलब्ध हैं। इसके लिए उस मंच का चयन उचित नहीं माना जा सकता, जहां देशभर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को सम्मानित करने के लिए खुद राष्ट्रपति और राज्यपाल मौजूद थे।

  [ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]