मुख्यमंत्री एवं केंद्रीय मंत्री जैसे बड़े पदों पर रह चुके राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निजी रिश्तों पर जिस ढंग से कीचड़ उछाला है, उसे किसी भी तर्क से वाजिब नहीं ठहराया जा सकता। लालू प्रसाद की परेशानी समझी जा सकती है। उन्हें न सिर्फ चारा घोटाले की सुनवाई के क्रम में बार-बार रांची के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं बल्कि रेल मंत्रित्वकाल से संबंधित भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों की जांच के सिलसिले में भी परिवार के कई सदस्यों समेत केंद्रीय जांच एजेंसियों का सामना करना पड़ रहा है। जांच के दायरे में उनके बेटी-दामाद भी हैं जिनका दिल्ली स्थित एक आलीशान फार्म हाउस ईडी ने अटैच कर लिया है। पटना से लेकर दिल्ली तक लालू परिवार की तमाम नामी-बेनामी संपत्ति जांच एजेंसियों के रडार पर है। इसी बीच उनकी पार्टी सत्ता से भी बेदखल हो गई लिहाजा उनके दोनों पुत्रों के मंत्रिपद भी जाते रहे। उनके एक पुत्र डिप्टी सीएम थे, जबकि दूसरे स्वास्थ्यमंत्री। लालू परिवार आरोप लगाता रहा है कि यह सब नीतीश कुमार और भाजपा की मिलीभगत से हुआ। यहां तक बात ठीक है। राजनीतिज्ञों के बीच अच्छी-बुरी बातें राजनीति से संबंधित ही होनी चाहिए। यह दायरा टूटने पर वही होता है जो लाल प्रसाद कर रहे हैं। वह बड़े नेता हैं। राज्य और इसके बाहर उनका खासा सम्मान है। हर किसी की तरह नेताओं के जीवन में भी उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। लालू परिवार को बड़प्पन के साथ इस परिस्थिति का सामना करना चाहिए। उनकी यह बात मान भी लें कि उन्हें राजनीतिक कारणों से परेशान किया जा रहा है, तो भी उन्हें न्यायपालिका पर भरोसा रखना चाहिए जिसकी तटस्थता और पारदर्शिता की नजीर पूरी दुनिया में दी जाती है। दुर्भाग्य है कि लालू परिवार ऐसा धैर्य नहीं दिखा रहा। वह मुख्यमंत्री के निजी एवं पारिवारिक रिश्तों को ह्यराजनीतिह्ण में घसीट रहे हैं जो उचित नहीं। राजनेताओं के जीवन में राजनीति से इतर रिश्ते भी होते हैं। इनका सम्मान किया जाना चाहिए। ऐसे रिश्ते लालू परिवार के भी होंगे। फिलहाल भाजपा या जदयू ने उनके ऐसे किसी ऐसे रिश्ते पर अंगुली नहीं उठाई। उम्मीद की जानी चाहिए कि दोनों पक्ष तनातनी के इस दौर में मर्यादा नहीं भूलेंगे और कम से कम एक-दूसरे के राजनीति से इतर रिश्तों को आरोप-प्रत्यारोप का जरिया नहीं बनाएंगे।

[ स्थानीय संपादकीय: बिहार ]