राज्य में विधानसभा चुनाव के साथ नेताओं के बीच एक-दूसरे के प्रति आक्रामक एवं अशोभनीय टिप्पणियों का जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह साल भर बाद भी थम नहीं रहा। मौजूदा हालात यह हैं कि सभी दलों के जिम्मेदार पदों पर आसीन नेता एक-दूसरे के पारिवारिक मामलों में भी टिप्पणियां कर रहे हैं। इसे किसी भी दृष्टि से सही नहीं ठहराया जा सकता। इस माहौल में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जरूर अपवाद दिखते हैं और प्राय: व्यक्तिगत टिप्पणियों से परहेज करते हैं। इतना ही नहीं, राष्ट्रीय भाव एवं एकता के मुद्दों पर उन्होंने वैचारिक मतभेद के बावजूद केंद्र सरकार एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति समर्थन भी जाहिर किया, लेकिन बिहार के अन्य नेता एवं दल, यहां तक कि जदयू के भी कई नेता उनसे प्रेरणा नहीं लेते, और सस्ती राजनीतिक प्रसिद्धि के लिए ऊलजुलूल बयानबाजी करते दिखते हैं। नेताओं को यह याद रखना चाहिए कि राजनीति में पैर जमाने की कोशिश कर रहे नौजवानों के अलावा राजनीति से सीधा संबंध न रखने वाले तमाम अन्य लोग भी वरिष्ठ नेताओं की शैली से प्रेरित एवं प्रभावित रहते हैं। ऐसे में कम से कम वरिष्ठ नेताओं को अपने हाव-भाव, बोलचाल और बाकी आचरण के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। राजनीति में उल्टा-सीधा बोलने वाले नेता पहले भी होते रहे हैं लेकिन इतिहास महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, डा.राजेंद्र प्रसाद, राधाकृष्णन, इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं को ही याद रखता है जिन्होंने अपनी योग्यता, समाज के प्रति संवेदनशीलता, कर्तव्यनिष्ठा एवं ईमानदारी की नजीर पेश की।
बिहार के लिए जरूरी है कि वह राष्ट्रीय परिदृश्य में प्रगतिशील एवं विकासोन्मुख दिखे, ताकि पूंजी निवेशक इसकी ओर आकृष्ट हों। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पूर्ण शराबबंदी के फैसले तथा सात निश्चय में यह छटपटाहट दिखती है, लेकिन राज्य के अन्य दल व नेता इसका भी नकारात्मक नजरिए से छिद्रान्वेषण करते रहते हैं। सरकार की जनविरोधी नीतियों का विरोध करना विपक्ष का धर्म है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि शराबबंदी जैसे प्रगतिशील फैसले का भी विरोध किया जाए, जिसकी वजह से बिहार की प्रतिष्ठा बढ़ी है। इसी तरह सत्तापक्ष को भी विपक्ष की हर मांग या राय को नजरअंदाज नहीं कर देना चाहिए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पाकिस्तान यात्रा, जीएसटी बिल तथा सर्जिकल स्ट्राइक जैसे मुद्दों पर केंद्र सरकार का समर्थन करके आदर्श राजनीतिक सोच की नजीर पेश की, लेकिन इससे बिहार के राजनीतिक दलों ने शायद प्रेरणा नहीं ली। राज्य में इस समय तमाम ऐसे विषय हैं जिन पर व्यापक राजनीतिक सहमति आवश्यक है, लेकिन फिलहाल सभी दल और नेता एक-दूसरे की टांग खींचने में लगे हैं। बिहार को केंद्र सरकार से तमाम बड़ी योजनाओं के लिए धन चाहिए। शराबबंदी का एतिहासिक फैसला देशभर में बिहार की उपलब्धि के तौर पर पेश किया जाना चाहिए। बात-बात में 'जंगलराजÓ कहकर राज्य की छवि खराब करने के प्रयासों का सख्ती से प्रतिवाद किया जाना चाहिए। यह सिर्फ तब संभव है, जब पूरा राज्य इसके लिए एकजुट खड़ा दिखे लेकिन फिलहाल स्थिति इसके ठीक विपरीत है। एक-दूसरे की टांग खींचने की कवायद में विभिन्न दलों के नेता न सिर्फ शब्द-अनुशासन खो रहे हैं बल्कि जाने-अनजाने बिहार की छवि पर भी बट्टा लगा रहे हैं। सभी दलों, खासकर इनके वरिष्ठ नेताओं को इस बारे में गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]