मार्च में मई सी गर्मी का एहसास हो रहा है। इस कारण प्रदेश अभी से जल संकट के मुहाने पर खड़ा दिखाई देता है। खासकर दक्षिणी और पश्चिमी हरियाणा में यह स्थिति अभी से गंभीर रूप लेती दिख रही है। तालाब सूखने लगे हैं और पेयजल के लिए जलघरों में पर्याप्त स्टॉक न होने से पानी की राशनिंग शुरू हो रही है। ऐसे में पानी का मोल बताने के लिए लाडवा के विधायक के मार्ग-निर्देशन में विशेष अभियान शुरू किया जा रहा है। जलमित्र गांव-गांव जाकर लोगों को पानी का महत्व समझाएंगे। नुक्कड़ नाटकों व अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से पानी का महत्व बताया जाएगा। गांव में नए भवनों में भूजल रिचार्ज की विशेष व्यवस्था बनाई जाएगी। यह प्रयास एकाकी भले ही लगें लेकिन जल संकट से जूझते प्रदेश के लिए आशा की किरण जरूर लेकर आए हैं।
प्रतिवर्ष स्थिति जिस तरह बद से बदतर होती जा रही है, उसके लिए हम सबको साझा प्रयास करना होगा। एक गांव, एक क्षेत्र के लोगों के चेतने से तस्वीर ज्यादा नहीं बदल सकती। दक्षिण हरियाणा में भूजल की स्थिति पहले ही भीषण स्तर पर पहुंच चुकी है। प्रदेश में जल प्राकृतिक संसाधन के तौर पर केवल भूजल के रूप में ही उपलब्ध है और वहां भी भंडार सिकुड़ते जा रहे हैं। ऐसे में हमें तुरंत चेतना होगा। अपने घर व परिवार में पानी के इस्तेमाल के प्रति सचेत रहना होगा। पानी बचाने को आदत में शुमार करना होगा। इसके अलावा जल संचयन से हमें बारिश की बूंदों को संजोकर धरा के जल भंडार तक पहुंचाना होगा। उपलब्ध पानी का अधिकतर हिस्सा भी मल के रूप में बहकर बर्बाद हो जाता है। उसको स्वच्छ बनाकर उसके इस्तेमाल की कोई व्यवस्था को अभी तक हम बेहतर ढंग से नहीं अपना पा पाएं। अधिकतर शहरों में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट अभी चल ही नहीं रहे हैं। कई शहरों में हम सालों से जमीन तलाश रहे हैं। इन प्लांट से शुद्ध हुए जल को खेती व गैर पेयजल कार्यों में इस्तेमाल किया जा सकता है। सरकारी व्यवस्था इस पर सक्रियता दिखाए तो स्थिति में एकाएक बदलाव आ सकता है। अगर हम पानी के इस्तेमाल के प्रति चेते नहीं तो भविष्य में प्रदेश को पेयजल के लिए भी गंभीर संकट का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा। 

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]