हरियाणा घनघोर जल संकट से जूझ रहा है। सिंचाई के लिए पानी की कमी तो है ही कई क्षेत्रों में पीने के लिए भी पानी मयस्सर नहीं हो रहा है। भूजल स्तर के मामले में प्रदेश ‘डार्क जोन’ में जा रहा है। प्रदेश में सन 2000 में भूजल औसतन 31 फीट पर उपलब्ध था, जो अब 60 फीट के पार मिल रहा है। सबसे बुरा हाल कुरुक्षेत्र, गुड़गांव, महेंद्रगढ़ का है, यहां भूजल स्तर 90 फीट नीचे है। प्रदेश में 36 मिलियन एकड़ फीट पानी की जरूरत है, लेकिन उपलब्धता 14 मिलियन एकड़ फीट है। इतनी गंभीर स्थित के वावजूद न तो प्रदेश सरकार पानी की बर्बादी रोकने के लिए गंभीर है और न प्रदेश के लोग इसके प्रति सचेत हैं। खास तौर से ग्रामीण इलाकों के नलो में पानी बहता रहता है। ग्र्रामीणों को लगता है कि पानी का पैसा तो देना ही नहीं है, इसलिए बहता है तो बहे, हमें क्या। भाजपा सरकार ने पिछली सरकार का फैसला बदलते हुए भले ही गांवों में निश्शुल्क आपूर्ति बंद कर दी, लेकिन स्थिति नहीं बदली। इसकी वजह यह रही कि गांवों में लाखों परिवारों ने पानी के कनेक्शन लिए ही नहीं। ग्रामीण क्षेत्रों में बिना कनेक्शन लिए पानी ले रहे परिवारों की संख्या 30 लाख के करीब है तो शहरों में भी छह लाख परिवार ऐसे हैं, जिन्होंने वैध कनेक्शन नहीं ले रखे हैं। इससे स्पष्ट है कि प्रदेश की आधी से ज्यादा आबादी मुफ्त का पानी पी रही है। पीने तक ही बात होती तो उतनी चिंता न होती, जितना चिंताजनक पानी की बर्बादी है। ऐसा नहीं कि केवल ग्रामीण क्षेत्रों में ही पानी बर्बाद होता हो, शहरी क्षेत्र भी पीछे नहीं हैं। जाहिर है कि पानी के संकट को लेकर आम जनमानस के मन में कोई चिंता नहीं है। यह बात अलग है कि यदि एक दिन पानी की आपूर्ति में कमी हो जाती है तो हम सरकार को कोसने लगते है। भले ही रूटीन में खुद पानी बर्बाद करते हों। नलों से व्यर्थ पानी बहता देख आगे निकल जाते हों। यह ठीक है कि सरकार भी वैसे गंभीर प्रयास नहीं करती दिखती, जैसा करना चाहिए, लेकिन यह भी सत्य है कि सरकार के प्रयास से ही स्थित में सुधार संभव नहीं है। इसके लिए सरकार को संजीदा होने के साथ ही प्रदेशवासियों को स्वत: स्फूर्त भाव से स्वंय प्रयास करने होंगे।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]