इससे शायद ही कोई अनजान हो कि अलगाववादी संगठन हुर्रियत कांफ्रेंस के नेताओं को पाकिस्तान से गुपचुप रूप से पैसा मिलता है और उसके जरिये ही वे कश्मीर में भारत विरोधी गतिविधियां चलाते हैं। इस पर उत्साहित नहीं हुआ जा सकता कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआइए हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी और उनके अन्य साथियों के खिलाफ यह जांच शुरू करने जा रही है कि उन्हें पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठन लश्करे तोइबा के सरगना हाफिज सईद से कब, कैसे और कितना पैसा मिला? क्या यह अजीब नहीं कि गिलानी एंड कंपनी पर बाहर से पैसा लेने के आरोप न जाने कब से लग रहे हैं, लेकिन जांच अब शुरु होने जा रही है?

आखिर अभी तक ऐसी जांच की जरूरत क्यों नहीं समझी गई और वह भी तब जब ऐसे आरोप भी सामने आ चुके हैं कि हुर्रियत नेताओं तक पैसा पहुंचाने में हवाला कारोबार के अलावा पाकिस्तान उच्चायोग की भी संदिग्ध भूमिका है? शायद यह जांच भी शुरु नहीं हुई होती, अगर हुर्रियत के कुछ नेता एक स्टिंग अॅापरेशन में कैमरे के समक्ष यह कहते हुए नहीं दिखे होते कि उन्हें सुरक्षा बलों पर पथराव करने, स्कूलों एवं अन्य सरकारी इमारतों को जलाने और माहौल खराब करने के लिए करोड़ों रुपये मिलते हैं। इस पर यकीन करना कठिन है कि जम्मू-कश्मीर और साथ ही केंद्र सरकार इससे अनभिज्ञ है कि कश्मीर में पत्थरबाजी एक धंधा बन गई है। यह धंधा फलफूल रहा है तो इसी कारण, क्योंकि राज्य सरकार उसे संचालित करने वाले हुर्रियत नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय यह अपील करती रहती है कि केंद्र सरकार को उनसे बात करनी चाहिए।

यह ठीक है कि केंद्र सरकार हुर्रियत एवं अन्य पाकिस्तान परस्त संगठनों के नेताओं से बातचीत के लिए राजी नहीं, लेकिन आखिर इसका क्या मतलब कि जिनसे बात करने की जरूरत नहीं समझी जा रही उनके खिलाफ कार्रवाई करने से भी बचा जा रहा है? कश्मीर में होने वाला उपद्रव पुलिस-प्रशासन अथवा राज्य या केंद्र सरकार से नाराजगी का परिणाम नहीं, बल्कि अराजकता फैलाने वाली धंधेबाजी का नतीजा है। दुनिया में ऐसा कहीं नहीं होता कि लोग बिना बात सड़कों पर उतर कर नियमित रूप से अशांति फैलाएं, लेकिन कश्मीर में ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि इसके लिए शरारती तत्वों को पैसे बांटे जाते हैं। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि अब स्कूली छात्रों को भी पत्थरबाजी के एवज में पैसे देने का धंधा शुरू हो गया है। कश्मीर में ऐसे भी कई गिरोह हैं जो पत्थरबाजी न करने के एवज में व्यापारियों से उगाही करते हैं।

आखिर भाजपा-पीडीपी के बीच यह कैसा एजेंडा ऑफ एलायंस है कि कश्मीर को अराजकता में झोंकने वालों को सरकारी सुरक्षा दी जा रही है? यदि यह उम्मीद की जा रही है कि कश्मीर के अमन-चैन से खेल रहे हुर्रियत नेताओं के प्रति नरमी बरतने से उनका हृदय परिवर्तन हो जाएगा तो यह खुशफहमी के अलावा और कुछ नहीं। यह हुर्रियत नेताओं को बेजा छूट देने का ही यह दुष्परिणाम है कि कश्मीर की आम जनता खुद को असहाय पा रही है। यह जरूरी है कि भारत सरकार हुर्रियत नेताओं को नियंत्रित कर घाटी की आम जनता तक पहुंच बनाए।

[मुख्य संपादकीय]