कहीं सूखा तो कहीं बेमौसम की बरसात। खाद की किल्लत तो कभी ज्यादा दाम में बिक्री। महंगे डीजल की मार तो कहीं राहत और वितरण में धांधली। किसानों की मुसीबतों का अंत होता नहीं दिखता। रबी की फसल को ही लें। किसानों ने दिन-रात कड़ी मेहनत की पर फसल कटाई के एक-डेढ़ महीने पहले शुरू हुई बेमौसम की बरसात ने उनके सपने चकनाचूर कर दिए। गेहूं की खड़ी फसलें तबाह हो गईं। मजबूरन राज्य सरकार को 73 जिलों को आपदाग्रस्त घोषित करना पड़ा। जैसे-तैसे थके हारे किसानों ने बची-खुची फसल समेटी तो सामने गेहूं क्रय केंद्रों की चुनौतियां मुंह बाए खड़ी थीं। क्रय केंद्रों पर गेहूं की खरीद से पहले उसकी मोटाई मापने का चलन है। इसके लिए गेहूं पहले चलनी में डाला जाता है।

यदि उसकी मोटाई मानक से कम निकली तो क्रय केंद्र में उसकी खरीद नहीं होती। बेमौसम बारिश से बची लगभग पैंतीस प्रतिशत फसल कमजोर रह जाने से गेहूं की मोटाई मानक पर खरा उतरना कठिन है। यही कारण है कि क्रय केंद्र अभी तक लक्ष्य का आधा गेहूं भी खरीद नहीं पाए हैं।1क्रय केंद्रों पर और भी दुश्वारियां हैं। बोरों का संकट, घटतौली की दिक्कत और भुगतान में विलंब की शिकायतें जस की तस हैं। इन समस्याओं को दूर करने का कभी कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया। आपदा के वक्त सरकार ने दावा किया था कि किसानों को राहत देकर मानक से कमजोर गेहूं भी खरीदा जाएगा, किंतु यह दावा हकीकत नहीं बन पाया।

ऐसे में किसानों के सामने एक ही रास्ता बचता है कि वह अपनी उपज बाजार में बेचें। क्रय केंद्र संचालकों की भी यही मंशा होती है। विगत माह सरकार ने एक आदेश जारी कर क्रय केंद्र संचालकों को गांवों में जाकर गेहूं खरीद की छूट दे दी। अब यह फैसला किसानों पर भारी पड़ रहा है। जो किसान केंद्रों से अयोग्य घोषित गेहूं बाजार में बेचते हैं, बिचौलिए वही गेहूं क्रय केंद्रों को बेच कर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। हाल यह है कि कई जिलों में क्रय केंद्रों पर गेहूं बेचने वाले किसानों की संख्या और कुल गेहूं की खरीद में जमीन आसमान का अंतर है। इसे देखकर स्पष्ट है कि पूरी व्यवस्था किस कदर बिचौलियों के चंगुल में फंसी है और अन्नदाता बेबस। सरकार आखिर किसानों की समस्याओं को कब समङोगी और कब उनके निदान का कोई गंभीर प्रयास होगा यह कह पाना कठिन है।

(स्थानीय संपादकीय उत्तर प्रदेश)