बिहार के संदर्भ में यह आम धारणा है कि निजी संसाधनों की कमी, केंद्र सरकार के असहयोग एवं अन्य कारणों से विकास योजनाओं के लिए धन का अकाल रहता है, लेकिन वित्तीय वर्ष 2015-16 के संदर्भ में सीएजी की रिपोर्ट के निष्कर्ष इसके ठीक उलट हैं। यह रिपोर्ट बताती है कि अफसरों की सुस्त एवं गैर जवाबदेह कार्यशैली की वजह से उस साल विभिन्न योजनाओं के लिए आवंटित धनराशि में से करीब 30 हजार करोड़ रुपये खर्च ही नहीं किए जा सके। इसमें करीब साढ़े दस हजार करोड़ रुपये लैप्स हो गए। यह रिपोर्ट राज्य के उन सभी संवेदनशील व्यक्तियों की चिंता बढ़ाने वाली है जो बिहार को देश के अन्य राज्यों की तरह तेजी से आगे बढ़ते देखना चाहते हैं। इसमें दो राय नहीं कि बिहार को सर्वांगीण विकास के लिए केंद्र सरकार से जिस पैमाने पर वित्तीय मदद मिलनी चाहिए, नहीं मिल पा रही लेकिन सीएजी रिपोर्ट में उल्लिखित निष्कर्षों के कारण राष्ट्रीय मंचों पर हमारा यह तर्क कमजोर पड़ जाता है। जब हम उपलब्ध धनराशि ही खर्च नहीं कर पा रहे तो हमारा यह आरोप नैतिक एवं व्यावहारिक आधार पर कमजोर दिखने लगता है कि केंद्र विकास योजनाओं के लिए धन आवंटन में बिहार की अनदेखी कर रहा है। इसी तरह उपयोगिता प्रमाणपत्र का मामला भी अफसरों की सुस्ती एवं लापरवाही से ही जुड़ा है। दरअसल, केंद्र सरकार विकास योजनाओं के लिए स्वीकृत धनराशि किस्तों में जारी करती है। नियम है कि अगली किस्त तभी जारी की जाएगी, जब पिछली किस्त खर्च किए जाने का उपयोगिता प्रमाणपत्र संबंधित विभाग द्वारा प्रस्तुत कर दिया जाएगा। राज्य सरकार के अधिसंख्य विभाग उपयोगिता प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने में कोताही बरतते हैं जिसका प्रभाव धन आवंटन में बाधा बनकर योजनाओं की प्रगति पर पड़ता है। इससे योजनाओं की लागत राशि भी बढ़ती जाती है। इसे लेकर जब केंद्र और राज्य सरकार के बीच बयानबाजी और आरोप-प्रत्यारोप चलते हैं तो यह नकारात्मक संदेश जाता है कि केंद्र और राज्य के रिश्ते ठीक नहीं चल रहे, जबकि वास्तव में इसके पीछे कोई राजनीति नहीं होती। यह कुछ अफसरों की सुस्ती और लापरवाही का मामला होता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्य को विकास की राह पर तेजी से दौड़ाने की पक्षधर सरकार ने सीएजी रिपोर्ट को अत्यधिक गंभीरता से लिया होगा। इस रिपोर्ट के निष्कर्षों के आधार पर जांच कराई जानी चाहिए कि किन विभागों और अधिकारियों की गैर जवाबदेह कार्यशैली के कारण 30 हजार करोड़ रुपये खर्च नहीं किए जा सके। इसी के साथ उपयोगिता प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने में कोताही बरतने वाले विभाग और अफसर भी चिन्हित किए जाने चाहिए।
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अफसरों के पास बेशक इसके बहाने होंगे लेकिन विकास में पिछड़ेपन का कलंक मिटाने के लिए छटपटा रहे राज्य में धन उपलब्ध होते हुए भी खर्च न करना संपूर्ण राज्य के प्रति 'अपराध' है। जरूरी है कि इसकी जिम्मेदारी एवं जवाबदेही तय की जाए।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]