भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट विधानमंडल के दोनों सदनों में पेश कर सार्वजनिक कर दी गई है। ऑडिट रिपोर्ट ने पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार के ‘काम बोलता है’ के नारे पर ढेरों सवाल खड़े किए हैं। कई योजनाओं पर अंगुली तो उठाई ही गई है, वित्तीय लेन-देन पर भी आपत्तियां खड़ी की गई हैं। कहा गया है कि सरकारी उपक्रमों में चहेतों को काम देने के लिए नियम-कायदे की भी परवाह नहीं की गई। अधिकारियों और ठेकेदारों ने खुली लूट की। बिजली सुधार की परियोजनाओं को यदि तय समय में पूरा किया गया होता तो बड़ी राशि की देनदारी से बचा जा सकता था। बेरोजगारी भत्ता बांटने के लिए समारोह के आयोजन पर भी सवाल खड़े किए गए हैं। प्राथमिक शिक्षा की बदहाली के साथ ही अनुपयुक्त रूप से किए गए खर्च का विवरण भी है।

सीएजी की रिपोर्ट देख कोई अचरज नहीं होता। पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल के दौरान लगातार विपक्षी आरोप लगाते थे कि जनहित की योजनाओं में पैसा बहाया जा रहा है। अखिलेश सरकार की ड्रीम परियोजना लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे के निर्माण को लेकर तो खूब सवाल उठे। चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री सभाओं में लगातार एक्सप्रेस वे की खूबियां गिनाते रहे पर विपक्षियों ने हमेशा यही कहा कि एक्सप्रेस वे के निर्माण से जुड़े अधिकारियों और ठेकेदारों ने करोड़ों रुपयों का घपला किया। अब सीएजी की रिपोर्ट आने से विपक्षी दलों की कई बातें सच भी साबित हुई हैं। फिजूलखर्ची भी सामने आई है।

15 करोड़ का बेरोजगारी भत्ता बांटने के लिए 20 करोड़ रुपये तो समारोह के आयोजन पर खर्च कर दिए गए। सरकार ने न सिर्फ अवैध खनन की अनदेखी की बल्कि राजस्व वसूली के मामलों की ओर से भी आंखें मूंदे रही। इससे करोड़ों के राजस्व का नुकसान हुआ। कई जगह पर्यावरण की मंजूरी के बिना ही खनन कराया गया और वन विभाग की शर्तो के अनुपालन पर भी ध्यान नहीं दिया गया। पिछली सरकार का गत विधानसभा चुनाव में जो परिणाम हुआ, उसके पीछे का सच सीएजी की रिपोर्ट से स्पष्ट है। उम्मीद है कि वर्तमान सरकार उन गलतियों को कतई नहीं दोहराएगी जो पिछली सरकार ने की थीं।

[स्थानीय संपादकीय :उत्तर प्रदेश]