राष्ट्रपति के रूप में अमेरिका की विधिवत कमान संभालने वाले डोनाल्ड ट्रंप के आगामी रुख-रवैये पर जैसी निगाहें अमेरिकी नागरिकों की होंगी वैसी ही शेष दुनिया के लोगों की भी। ऐसा केवल इसलिए नहीं होगा, क्योंकि दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश की कमान उनके हाथ होगी, बल्कि इसलिए भी कि वह परंपरागत राजनेता नहीं हैं। वह अप्रत्याशित रूप से राष्ट्रपति चुनाव जीतने में कामयाब रहे, लेकिन अभी भी उनका एक राजनेता के रूप में व्यवहार करना शेष है। अमेरिका और साथ ही दुनिया के तमाम लोगों को इस पर भरोसा करना कठिन हो रहा है कि आखिर हिलेरी क्लिंटन जैसी मंझी हुई अनुभवी नेता के आगे रह-रह कर विवाद को न्यौता देने और जिस-तिस को भला-बुरा बोलने वाले डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति चुनाव कैसे जीत गए? हालांकि चुनाव जीतने के बाद उअन्होंने एक सुलझे हुए नेता की तरह संयमित संबोधन दिया, लेकिन अपने पहले संवाददाता सम्मेलन में वह पुराने अक्खड़ रूप में नजर आए। वह मीडिया के लोगों से न केवल उलझे, बल्कि उन्हें खरी-खोटी भी सुनाई। चूंकि उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान अपने विरोधियों और आलोचकों के प्रति कुछ ज्यादा ही तीखे तेवर दिखाए थे इसलिए राष्ट्रपति के रूप में उनके फैसलों को लेकर और अधिक उत्सुक होना स्वाभाविक है। इस उत्सुकता का एक बड़ा कारण यह भी है कि वह देश-दुनिया के ज्वलंत मसलों पर बिल्कुल भिन्न तरीके से अपनी राय रखते रहे हैं। इस क्रम में उनके न जाने कितने बयान विवाद का विषय बने। उन्होंने पड़ोसी देश मैक्सिको के लोगों को अमेरिका आने से रोकने के लिए जहां सीमा पर दीवार खड़ी करने की बात कही वहीं मुसलमानों के प्रवेश पर भी पाबंदी लगाने का ऐलान किया।
परंपरावादी मानी जाने वाली रिपब्लिकन पार्टी के नेता के तौर पर डोनाल्ड ट्रंप के कई बयान ऐसे भी रहे जिनसे यह संकेत मिला कि वह अमेरिका की विदेश नीति में आमूल-चूल परिवर्तन का इरादा रखते हैं। उन्होंने न केवल प्रतिस्पद्र्धी देशों को आगाह किया, बल्कि कई मित्र देशों को भी चेताया। यदि वह सब कुछ वैसा ही करते हैं जैसा कि कहते रहे हैं तो यह तय है कि न तो अमेरिका पहले जैसा रह जाएगा और न ही दुनिया। यह उम्मीद की जा रही है कि राष्ट्रपति की कुर्सी उन्हें उनकी जिम्मेदारियों का अहसास कराने के साथ ही देश-दुनिया की जमीनी हकीकत से परिचित कराएगी, लेकिन यह संभव नहीं कि उनके नेतृत्व में अमेरिकी नीतियों में कहीं कोई तब्दीली न आए। ऐसा होने के आसार इसलिए भी हैं, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य बदलता दिख रहा है। यह बिल्कुल भी स्पष्ट नहीं कि पश्चिम एशिया के हालात क्या करवट लेंगे, लेकिन यह साफ नजर आ रहा है कि चीन अमेरिका को चुनौती देने से पीछे नहीं हटने वाला। बराक ओबामा के समय अमेरिका और रूस के संबंध मधुर नहीं रहे। हालांकि डोनाल्ड ट्रंप की रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से दोस्ती है, लेकिन यह कहना कठिन है कि दोनों देशों के संबंधों में खटास दूर होगी, क्योंकि रूस अंतरराष्ट्रीय मामलों में अपना प्रभुत्व कायम रखने के लिए तत्पर दिख रहा है। जहां तक अमेरिका और भारत के रिश्तों का सवाल है तो इस बारे में तत्काल किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता।

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