-----एकल परिवारों वाले अभिभावकों को देखना होगा कि बच्चा अधिक समय तक अकेला न रहे। -----प्रेम की तरह नृशंसता की भी कोई सीमा नहीं होती। जब लगने लगता है कि अमुक कांड तो बहुत जघन्य हो गया तो कुछ ही दिन फिर कोई और बर्बर घटना अपना ही रिकार्ड तोड़ देती है। इस बार यह कारनामा राजधानी लखनऊ में हुआ है जहां एक कलियुगी पुत्र ने सम्पत्ति के लिए मां और बहन की हत्या कर दी। लखनऊ विश्वविद्यालय में शिक्षक रहे पिता के देहांत के बाद जिस पुत्र को अपनी जननी-भगिनी की चिंता करनी चाहिए थी, वही उनका काल बन गया। हत्या के लिए उसने चाकू के साथ पेचकस का इस्तेमाल किया। वह पकड़ा गया और अब सजा भुगतेगा परंतु प्रश्न है कि ऐसा हुआ क्यों। मनोवैज्ञानिक ऐसी घटनाओं का विश्लेषण करते हैं। उनके अनुसार प्राय: ऐसी घटनाओं के बीज परिवार और अपराधी के सामाजिक परिवेश में छिपे होते हैं। कई बार लड़कों की कुसंगति उन्हें गलत मार्ग पर ले जाती है। इस केस में भी यही हुआ। पुत्र की हरकतों से परेशान मां ने अपने किरायेदार से दुखड़ा भी रोया था। पुत्र कुछ करता नहीं था लेकिन, खर्चे बड़े थे। उनसे निपटने के लिए उसने मां और बहन को ही मार दिया। एक और घटना नोएडा में हुई जहां एक स्वीमिंग कोच ने एक प्रशिक्षु के साथ आपत्तिजनक व्यवहार किया। अब पुलिस कोच की तलाश कर रही है। मानवीय संबंधों को शर्मिंदा करती ऐसी अनेक घटनाएं रोज हुआ करती हैं। यह दावा तो कोई नहीं कर सकता कि इन्हें रोका जा सकता है लेकिन, यदि ये सामाजिक अपराध हैं तो इनका निदान भी समाज में ही तलाशना पड़ेगा। कोई परिवार अपने बच्चों को गलत राह पर जाते नहीं देखना चाहता। यह भी गारंटी नहीं कि अच्छी परवरिश बच्चों को अच्छा नागरिक बना ही दे लेकिन, इसमें भी संदेह नहीं कि उनकी शिक्षा, जेब, आचरण और अब तो मोबाइल फोन पर सजग दृष्टि बच्चों को सही मार्ग बता सकती है। स्कूल जाकर शिक्षकों से लगातार मिलने के अलावा बच्चों को क्वालिटी समय देना होगा। एकल परिवारों वाले अभिभावकों को देखना होगा कि बच्चा अधिक समय तक अकेला न रहे। उन्हें किताबों से दोस्ती करना सिखाएं और बताएं कि शाम घर के बजाय मैदान में बिताया करें क्योंकि सामूहिकता से मिले संस्कार जल्दी जाते नहीं।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]