मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इस घोषणा ने बिहार बोर्ड रिजल्ट फर्जीवाड़े से निराश नागरिकों को उम्मीद की किरण दिखाई है कि इसके लिए दोषी शिक्षकों और अधिकारियों के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई की जाएगी। शिक्षकों और अधिकारियों के गैर जिम्मेदाराना रवैये की वजह से पूरे देश में बिहार की बदनामी हुई है लिहाजा इनके दोष को 'राज्य के प्रति अपराध' मानकर कार्रवाई की जानी चाहिए। इनके कृत्य ने मेधावी छात्र-छात्राओं को पीडि़त और अपमानित किया है। इन्हें इसकी कठोर सजा मिलनी ही चाहिए। उन शिक्षकों को शिक्षक बने रहने का अधिकार नहीं, जिन्होंने साल भर स्कूलों में पढ़ाने पर ध्यान नहीं दिया। उसके बाद उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन में भी हद दर्जे की लापरवाही की। उन मेधावियों की पीड़ा अवर्णनीय है जिन्होंने दिन-रात परिश्रम करके आइआइटी जैसी कठिन प्रवेश क्वॉलीफाई कर ली, पर स्थानीय शिक्षकों ने उन्हें गणित, भौतिकशास्त्र और रसायनशास्त्र जैसे विषयों में अनुत्तीर्ण कर दिया। हिंदी और अंग्रेजी में भी बड़ी संख्या में परीक्षार्थी फेल कर दिए गए। परीक्षा परिणाम घोषित होने पर एकबारगी लगा था कि नकल पर सख्ती के कारण परिणाम खराब रहा लेकिन अब स्पष्ट हो चुका है कि बड़ी संख्या में परीक्षार्थी उत्तर पुस्तिकाओं के दोषपूर्ण मूल्यांकन के शिकार हुए। इन मेधावियों की समस्या का समाधान हेाता नहीं दिखता क्योंकि स्क्रूटनी में सिर्फ री-टोटलिंग की जाएगी। यह ऐसी गंभीर समस्या है जिसका कोई न कोई समाधान राज्य सरकार को निकालना चाहिए। किसी भी व्यक्ति के जीवन में एक साल का खासा महत्व होता है। इसके अलावा बच्चों के लिए इससे उत्पन्न हताशा से उबरना आसान नहीं होगा। कम से कम उन परीक्षार्थियों की उत्तर पुस्तिकाओं का दोबारा मूल्यांकन करवाया जा सकता है जो उच्च शिक्षा के किसी अन्य पाठ्यक्रम की प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर चुके हैं। इस साल भी परीक्षा परिणाम की बदहाली देखकर साफ है कि शिक्षकों पर किसी कहे-सुने का कोई असर नहीं होने वाला, लिहाजा अंगुली टेढ़ी करना जरूरी है। राज्य सरकार शिक्षकों को सभी संभव सुविधा-साधन उपलब्ध करवा रही है। इसके बावजूद वे अपने दायित्व की पूर्ति नहीं कर पा रहे तो उन्हें सेवा से बर्खास्त करके नए शिक्षक नियुक्त करना बेहतर विकल्प है। इस दिशा में युद्धस्तर पर कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि जुलाई में नया शिक्षा सत्र शुरू होने से पहले माध्यमिक विद्यालयों का माहौल व्यवस्थित किया जा सके। राज्य की बदनामी के लिए जिम्मेदार शिक्षकों और अधिकारियों के खिलाफ कितनी भी कठोर कार्रवाई की जाए, आम आदमी उसका समर्थन करेगा। जटिल बीमारियां 'कड़वी दवा' से ही ठीक होती हैं।
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यदि शिक्षक अपनी पढ़ाने-लिखाने की मूल जिम्मेदारी से मुंह न मोड़ते तो राज्य को बार-बार ऐसी अपमानजनक परिस्थिति का सामना नहीं करना पड़ता। विद्यालयों का खराब माहौल इस समस्या की जड़ है। इससे मुक्ति के लिए पहला प्रहार इसी जड़ पर किया जाना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]