मौसम अनुकूल होने के कारण मई में हर रोज दस हजार से अधिक यात्री केदारनाथ पहुंच रहे थे, लेकिन जून के पहले हफ्ते में यह संख्या औसतन चार हजार तक घट गई।
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मैदानों में भले ही पारा कुलांचे भर रहा हो, लेकिन पहाड़ों में लगातार हो रही बारिश चारधाम यात्रा पर असर डालने लगी है। मानसून से पहले की इस बारिश के चलते पिछले कुछ दिनों में यात्रियों की संख्या में भी गिरावट दर्ज की गई है। खासकर केदारनाथ धाम में तो यात्रियों के पहुंचने का आंकड़ा दस हजार से घटकर छह-सात हजार के बीच आ गया है। असल में आपदा के बाद पहली बार चारधाम यात्रा को लेकर अप्रत्याशित उत्साह दिखाई दे रहा है। मौसम अनुकूल होने के कारण मई में तो रोजाना दस हजार से अधिक यात्री केदारनाथ पहुंच रहे थे, लेकिन जून के पहले सप्ताह में यह संख्या औसतन चार हजार तक घट गई। जबकि, पहले 25 जून तक धाम में यात्रियों की भारी भीड़ देखने को मिलती थी। दरअसल मौसम विभाग की चेतावनी के चलते बीती 28 मई को रुद्रप्रयाग जिला प्रशासन ने केदारनाथ जाने वाले यात्रियों को सोनप्रयाग व गौरीकुंड में ही रोक दिया था। तब से देशभर में यात्री सतर्क हो गए और धीरे-धीरे उनकी आमद घटने लगी। यही नहीं, बदरीनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री हाइवे भी बारिश के कारण पिछले कुछ दिनों से लगातार बाधित हो रहे हैं। ऐसे में यात्रा को रोकना प्रशासन की मजबूरी बनता जा रहा है। जाहिर है इसका असर तो दिखना ही है। मौसम के इस मिजाज से यात्रा पड़ावों के व्यापारी व होटल व्यवसायी भी निराश हैं, क्योंकि मानसून से पहले ही उनका कारोबार मंदा पडऩे लगा है। जिन यात्रियों ने बुकिंग कराई हुई है, वे मौसम की जानकारी लेने के बाद ही यात्रा पर आने की प्लानिंग कर रहे हैं। ऐसे में मई आखिर तक खचाखच भरे रहने वाले होटलों में अब यात्रियों का इंतजार करना पड़ रहा है। इसके अलावा मौसम के बदलाव से हेली सेवाएं भी लगातार बाधित हो रही हैं। केदारनाथ के लिए तो दोपहर दो बजे के बाद हेलीकॉप्टर उड़ान भर ही नहीं रहे। नतीजा, हेली सेवाओं से यात्रा करने वाले यात्रियों को बैरंग लौटना पड़ रहा है। यहां यह बताना भी जरूरी है कि चारधाम यात्रा मार्ग मौसम के लिहाज से बेहद संवेदनशील हैं। हल्की सी बारिश होने पर भी मलबा आ जाने से ये मार्ग जगह-जगह बंद हो जाते हैं। उस पर स्लाइडिंग जोन में पहाड़ी से पत्थर गिरने का खतरा भी लगातार बना रहता है। इन दिनों भी ऐसे ही हालात हैं। उस पर वैकल्पिक मार्ग न होने से यात्रियों की मुश्किलें और बढ़ जाती हैं। ऐसे में बेहतर यही है कि यात्री खुद जोखिम लेने से बचें। इसके साथ ही सरकारी तंत्र को भी यात्रा व्यवस्थाओं को गंभीरता से लेना होगा। ऐसे इंतजाम करने होंगे, जिससे प्रतिकूल मौसम में यात्रियों को कम से कम परेशानी हो।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]