पलवल में ट्रेन पर हुए झगड़े में एक किशोर की मौत के बाद राजनीतिक दल फिर वही कर रहे हैं, जो अरसे से करते आ रहे हैं। पीड़ित परिवार के प्रति संवेदना जताने पहुंचना गलत नहीं है। हर संवेनशील व्यक्ति ऐसा करेगा। करना ही चाहिए, लेकिन संवेदना जताने के बहाने सांप्रदायिक सद्भाव को चोट पहुंचाना कहां की विवेकधर्मिता है। अभी तक पुलिस जांच में सामने आया है कि ट्रेन में सीट को लेकर विवाद हुआ था। इस झगड़े में बल्लभगढ़ के गांव खंदावली के 15 वर्षीय जुनैद की जान चली गई और उसके रिश्ते के चार भाई घायल हो गए थे। जुनैद के भाइयों ने आरोप लगाया था कि उन पर बीफ खाने की बात कहते हुए हमला किया गया था।

हालांकि पुलिस के मुताबिक ऐसी कोई बात नहीं थी और झगड़ा सीट को लेकर हुआ था। झगड़े का कारण कुछ भी रहा हो, लेकिन ट्रेनों में यात्री कितने असुरक्षित हैं, यह घटना इसका प्रमाण है। इसके पहले न जाने कितनी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। बीते मार्च में हिसार के एक व्यापारी की भिवानी में इसलिए पीट पीटकर हत्या कर दी गई थी, क्योंकि हमलावर उसे सीट से उठाकर ताश खेलना चाहते थे।

जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तो मथुरा में उनकी बहन के पौत्र को ट्रेन से फेंककर मार डाला गया था। राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी अरुणिमा सिन्हा को बरेली में लुटेरों ने नीचे फेंक दिया था, जिससे उनका एक पैर कट गया। तलवारबाजी के एक राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी होशियार सिंह को तो पुलिस वालों ने ही दो सौ रुपये न देने पर ट्रेन से फेंक दिया था और उनकी जान चली गई। इन घटनाओं से स्पष्ट है कि ट्रेनों में सुरक्षा के बंदोबस्त कितने लचर हैं। इसलिए वारदात को सांप्रदायिक रंग देने के बजाय यात्रियों की सुरक्षा को मुद्दा बनाना चाहिए।

रेल मंत्री सुरेश प्रभु भले ही ट्रेनों में यात्रियों को तमाम तरह की सुविधाएं देने के लिए प्रयासरत हैं, लेकिन उनकी सुरक्षा के लिए कोई ठोस इंतजाम नहीं नजर आते। पैसेंजर ट्रेनों और एक्सप्रेस ट्रेनों के सामान्य कोच में जिस तरह की गुंडई और लूटपाट होती है, उसकी पीड़ा असह्य होती है। कुछ लोग विरोध कभी-कभी विरोध करते हैं तो उनका वही हश्र होता है जो जुनैद का हुआ।रेल मंत्री भले ही ट्रेनों में तमाम सुविधाएं देने के लिए प्रयासरत हैं, लेकिन सुरक्षा के ठोस इंतजाम नहीं नजर आते

[हरियाणा संपादकीय]