दिल्ली के 89 गांवों को ग्रामीण क्षेत्र से बाहर कर शहरीकृत क्षेत्र में शामिल करने का दिल्ली सरकार का फैसला स्वागतयोग्य है। इससे न सिर्फ इन गांवों में अनियोजित विकास पर रोक लगेगी, बल्कि यहां बड़ी संख्या में मकान बनाए जा सकेंगे और लोगों का घर का सपना पूरा किया जा सकेगा। इस संबंध में अधिसूचना लागू होने के बाद दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की लैंड पूलिंग योजना को लागू करने का रास्ता भी साफ हो गया है। डेढ़ साल से लंबित मामले में देर से ही सही, अधिसूचना जारी कर सकारात्मक प्रयास किया गया है। इस नए कदम से पश्चिमी और बाहरी दिल्ली के सीमावर्ती क्षेत्रों की सूरत बदलने की उम्मीद की जा सकती है। इससे दिल्लीवासियों को अपने आशियाने के लिए दिल्ली से बाहर नहीं जाना पड़ेगा और राजधानी में आशियाने की चाह रखने वाले लोगों की इच्छा भी पूरी होगी। लेकिन नए मकानों और उनके कारण बढऩे वाली आबादी को मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराना भी एक बड़ी चुनौती होगी। सरकार को इसके लिए अभी से पुख्ता तैयारी शुरू कर देनी चाहिए।
दिल्ली में आबादी घनत्व बहुत अधिक होने और उसके चलते बुनियादी सुविधाओं के चरमराने की बात बार-बार कही जाती है। ऐसे में जब इन 89 गांवों में भी विकास के बाद आबादी बढ़ेगी, तब बुनियादी सुविधाओं का विस्तार कैसे संभव हो पाएगा, यह निश्चित ही एक बड़ा प्रश्न है? फिलहाल दिल्ली की आवश्यकता को पूरा करने के लिए 15000 बसों की जरूरत है, लेकिन बसें सिर्फ 5800 ही हैं। यही नहीं, वाहनों की पार्किंग भी दिल्ली में एक बड़ी समस्या है। राजधानी की करीब पौने दो करोड़ की आबादी के पास करीब एक करोड़ वाहन हैं। ऐसे में आबादी बढ़ेगी तो पार्किंग की समस्या भी गहराएगी। बिजली-पानी की किल्लत आज भी दिल्लीवासियों को काफी परेशान कर रही है। अब भी दिल्ली की अनधिकृत कॉलोनियों में जल बोर्ड का पाइपलाइन नेटवर्क नहीं है। ऐसे में शहरीकृत गांवों में नए मकान बनने से उनके लिए यदि अतिरिक्त व्यवस्था नहीं की गई तो दिल्ली के शेष इलाकों पर इसका बोझ पड़ेगा। इन समस्याओं पर सरकार को गंभीरता के साथ अभी से विचार करना चाहिए और जल्द से जल्द इनके समाधान के लिए पुख्ता योजना तैयार करनी चाहिए, ताकि आने वाले वक्त में नए विकसित होने वाले क्षेत्र दिल्ली के लिए नई समस्या का सबब न बनें।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]