जम्मू के सीमावर्ती क्षेत्र आरएसपुरा में जीरो लाइन पर स्थित घराना वेटलैंड का संरक्षण न हो पाना चिंता का विषय है। सर्दियां शुरू होती ही साइबेरिया से विभिन्न प्रजातियों के पक्षी यहां कुछ माह विचरण और प्रजनन के लिए पहुंचते हैं। इनको देखने के लिए पर्यटक और पक्षी प्रेमी देश के कई हिस्सों से यहां पहुंचते हैं। अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित इस वेटलैंड और इसके साथ लगते इलाके को बॉर्डर टूरिज्म केरूप में विकसित करने की सरकार की योजना फलीभूत होती नहीं दिख रही है। कई सरकारें आईं और चली गईं, केवल खोखले दावे ही किए गए। इस वेटलैंड की खूबसूरती का नजारा देखने के लिए यहां टूरिस्टों के लिए ढांचे भी बनाए जाने थे लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। वेटलैंड अभी राजहंस, सुखार्ब, सींख पर, क्रेन जैसे पक्षियों से गुलजार है और यह नजारा देखते ही बन रहा है। बेशक घराना तक पहुंचने के लिए सरकार ने सड़क तो बना दी है लेकिन घराना के आसपास के गांव को खाली नहीं करवाया जा सका है। इसके कारण इसका विस्तार नहीं हो पा रहा। रही सही कसर गांव वासियों ने पूरी कर दी क्योंकि वे नहीं चाहते कि इसका विस्तार हो और उन्हें गांव छोड़ कर कहीं और जाना पड़े। यह वेटलैंड राजनीति की भेंट भी चढ़ता जा रहा है क्योंकि कुछ स्थानीय नेता लोगों के समर्थन में अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रहे हैं, क्योंकि यहां उनका वोट बैंक भी है। उपरी तौर पर यह नेता सरकार के साथ दिखते हैं मगर अंदरूनी तौर पर यह गांव के लोगों के साथ हैं। गांववासियों का यह तर्क है कि यह पक्षी उनकी फसल को बर्बाद कर देते हैं। अपने स्वार्थ के लिए कुछ लोग पटाखे चलाकर पक्षियों को उड़ा देते हैं जिससे की यह पक्षी कहीं और चले जाएं। सरकार का यह दायित्व बनता है कि वह घराना गांव के लोगों को कहीं ओर जमीन देकर बसाएं, जिससे कि इस वेटलैंड का विस्तार हो सके। बॉर्डर टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने जो योजना तैयार की है, उस पर गंभीरता से अमल होना चाहिए। गांववासियों को भी यह समझना होगा कि अगर यहां पर देश विदेश से पर्यटक आएंगे तो इसमें उन्हीं का फायदा है। पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा तो लोगों का भी विकास होगा।

(स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर)