स्वास्थ्य विभाग में सुधार की तैयारी कर रही प्रदेश सरकार ने पहली बार कड़ा रुख अपनाया है। मांगों को लेकर हड़ताल पर गए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के कई कर्मचारी नेताओं को बर्खास्त कर दिया गया है। सरकार ने इन नेताओं के खिलाफ एफआइआर की चेतावनी भी दी है। इस कार्रवाई से सरकार ने कर्मचारी संगठनों को कड़ा संदेश देने का प्रयास किया है। सरकार इस पर अडिग रहती है तो चुनौतियां अभी कम होने वाली नहीं हैं। एनएचएम कर्मचारी कई माह से आंदोलन की राह पर चल रहे हैं और सरकार से कई दौर की बातचीत भी हो चुकी है। सरकार उनकी कुछ मांगें मान चुकी है और कुछ पर विचार चल रहा है। कर्मचारी संगठनों को विश्वास दिलाना भी सरकार की जिम्मेवारी है कि उनके साथ अनदेखी नहीं होगी। कर्मचारी संगठन भी एनएचएम कर्मियों के समर्थन में उतरना शुरू हो रहे हैं। अगर ऐसा होता है तो निश्चित तौर पर चुनौती बढ़ सकती है। सबको बेहतर स्वास्थ्य देना सरकार की जिम्मेवारी भी है और चुनौती भी।
एक ओर कर्मचारियों की भारी कमी और उस पर उनका आंदोलनकारी रुख दोनों सरकार की चिंता और बढ़ा रहे हैं। निश्चित तौर पर कुछ परेशानी तो है। गनीमत रही कि चिकित्सकों ने हड़ताल वापस ले ली, नहीं तो स्थिति और भी बदतर हो सकती है। पिछले कुछ दिनों में सरकार ने व्यवस्था में बदलाव के लिए कई स्तर पर प्रयास किए। कुछ जगह कर्मचारियों पर शिकंजा भी कसा गया। ऐसे में यह संदेश चला गया कि सरकार उनके खिलाफ है। सरकार को यह विश्वास दिलाना होगा कि कर्मचारी व्यवस्था का बहुत महत्वपूर्ण अंग हैं और सरकार की जनहितैषी नीतियों के आमजन तक संवाहक भी। ऐसे में वह सरकार से अलग कैसे हो सकते हैं। अफसरशाही के रवैये से कई बार ऐसा हुआ कि सरकार के निर्णय को लागू करने में महीनों लग गए। डॉक्टरों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने का कदम कई प्रदेशों में तत्काल लागू हो गया पर हरियाणा में यह महीनों तक लटका रहा। अब जाकर उस पर मुहर लग पाई है। इसी तरह मंत्री की सहमति के बिना एनएचएम कर्मियों को हटाने का निर्णय भी हो गया। बाद में सरकार ने यह फैसला पलटा। सरकार ढिलाई बरतने वालों पर कड़ी कार्रवाई कर ही रही है, बेहतर कार्य करने वालों को आगे बढ़ाए। यह व्यवस्था पारदर्शी हो तो विश्वास बहाली आसानी से हो पाएगी। एक बार विश्वास बहाल हुआ तो अधिकतर परेशानियां स्वत: दूर हो जाएंगी।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]