भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान की सैन्य अदालत द्वारा दी गई फांसी की सजा के मामले में हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में होने वाली सुनवाई भारत-पाकिस्तान के साथ दुनिया के अन्य देशों का भी ध्यान खींचेगी। भारत इस बात को लेकर आश्वस्त है कि वह इस अदालत में यह साबित करने में समर्थ रहेगा कि कुलभूषण जाधव को मृत्युदंड की जो सजा सुनाई गई वह गलत है और उसे अपने इस भारतीय नागरिक से संपर्क-संवाद की सुविधा मिलनी चाहिए। किसी के लिए भी यह कहना कठिन है कि यह अदालत किस नतीजे पर पहुंचेगी, लेकिन यह माना जा रहा है कि पाकिस्तान ऐसे प्रमाण शायद ही उपलब्ध करा पाए जिससे वह कुलभूषण जाधव को भारतीय जासूस सिद्ध करने में सफल रहे। जो भी हो, एक आशंका यह भी है कि यदि अंतरराष्ट्रीय अदालत भारत के पक्ष में फैसला सुनाती भी है तो पाकिस्तान उसे मानने से इन्कार कर सकता है। इसके लिए वह तरह-तरह की दलीलों के साथ उन देशों के उदाहरण भी दे सकता है जिन्होंने किसी मामले में इस अदालत के फैसले को मानने से इन्कार कर दिया था। स्पष्ट है कि भारत को ऐसी किसी स्थिति के लिए तैयार रहने के साथ ही उन उपायों पर भी गौर करना चाहिए जिनका सहारा लेकर पाकिस्तान पर दबाव डाला जा सके।
यह सही है कि अंतरराष्ट्रीय अदालत का फैसला पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ाएगा, लेकिन पाकिस्तानी सेना के टकराव वाले रुख-रवैये की अनदेखी नहीं की जा सकती। इस धारणा में बहुत कुछ सच्चाई नजर आती है कि पाकिस्तानी सेना ने कुलभूषण जाधव को भारतीय जासूस के रूप में प्रचारित करने का काम सिर्फ इसलिए किया ताकि नवाज शरीफ सरकार को मुश्किल में डाला जा सके। इसी तरह यह मानने के भी पर्याप्त कारण हैं कि जाधव को आनन-फानन मौत की सजा इसीलिए सुनाई गई ताकि भारत-पाकिस्तान के बीच संबंध सुधार की कोई पहल आगे न बढ़ सके। भारत के समक्ष मुश्किल यह है कि वह पाकिस्तान सरकार पर तो दबाव डाल सकता है, लेकिन उसकी सेना पर नहीं। आवश्यकता इस बात की है कि भारत ऐसे कोई कदम उठाए जिसका असर पाकिस्तान की सेना पर पड़े। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि कुलभूषण जाधव को बचाने के मामले में भारत ने अन्य विकल्प भी सोच रखे होंगे। जाधव के मामले में अंतरराष्ट्रीय अदालत का फैसला कुछ भी हो, इस प्रकरण में भारत को एकजुट नजर आना चाहिए। यह ठीक नहीं कि जाधव को बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय अदालत का दरवाजा खटखटाने के फैसले की कुछ राजनीतिक दलों ने आलोचना की। किन्हीं कारणों से कांग्रेस इस मामले में सबसे आगे दिखी। ऐसा लगता है कि उसने विरोध के लिए विरोध करना जरूरी समझा। उसे यह भी पता होना चाहिए कि कूटनीतिक मामलों में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की राय महत्वपूर्ण साबित होती है। यदि पाकिस्तान किसी बहाने अंतरराष्ट्रीय अदालत के फैसले को मानने से आनाकानी करता है तो भारत को विश्व बिरादरी के समक्ष यह प्रकट करने में आसानी होगी कि वह एक ऐसा देश है जो अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों का पालन करने के लिए तैयार नहीं। हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय संयुक्त राष्ट्र की संस्था है और यदि पाकिस्तान उसके आदेश को नहीं मानता तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच अपने लिए मुश्किलें ही खड़ी करेगा। भारत को यह रेखांकित करने के लिए तैयार रहना चाहिए कि पाकिस्तान ने किस तरह पहले भी संयुक्त राष्ट्र के कई आदेशों-निर्देशों और कानून का उल्लंघन किया है।

[  मुख्य संपादकीय  ]