यह पुलिस की अकर्मण्यता का ही परिणाम है कि अपराधी बेलगाम होते जा रहे हैं और लोगों को इंसाफ के लिए स्वयं कानून हाथ में लेना पड़ा।

पंजाब में विगत दिवस वह हुआ, जिसका आभास शायद ही किसी को रहा हो। बठिंडा के एक गांव में ग्रामीणों ने एक चिट्टा तस्कर को तेजधार हथियारों से काट डाला, जिससे उसकी मौत हो गई। निस्संदेह किसी को भी कानून हाथ में लेने का कोई अधिकार नहीं है, लेकिन इस बात पर गौर करना आवश्यक है कि आखिर ऐसी परिस्थिति उत्पन्न ही क्यों हुई? आखिर क्यों आए दिन किसी न किसी गांव में लोग शराब ठेकों पर अपना गुस्सा उतारते हैं? इस सवाल का जवाब कतई अनपेक्षित नहीं है। इस घटना के पीछे सबसे बड़ा कारण चिर-परिचित पुलिस की लापरवाही ही है। बठिंडा में जो हुआ, उसके बारे में ग्रामीणों का कहना है कि जिस चिट्टा तस्कर को उन्होंने मारा, उसने गांव में बड़ी संख्या में लोगों को नशे की लत लगाई। उस पर नशा तस्करी व दुष्कर्म के केस दर्ज हैं। वह जेल भी गया था और आजकल जमानत पर बाहर आकर फिर से नशे की तस्करी कर रहा था। इसके अतिरिक्त वह गांव की लड़कियों व महिलाओं से अश्लील हरकतें भी करता था, जिससे गांववासी तंग आ चुके थे। इसकी शिकायत पुलिस को भी की थी, लेकिन पुलिस ने कोई कदम नहीं उठाया। आखिरकार गांव वालों ने खुद ही इंसाफ करने का फैसला कर लिया। पूरा गांव इस हत्या का जुर्म अपने सिर ले रहा है, इसका अर्थ यही है कि स्थिति गंभीर थी, लेकिन पुलिस इसका अंदाजा नहीं लगा पाई। यह निश्चित रूप से पुलिस व सरकार के लिए चेतने का समय है। चुनाव से पूर्व अपराध पर लगाम लगाने, नशे को जड़ से उखाड़ फेंकने के ढेरों वादे किए गए थे। नई सरकार के गठन के बाद नशे के खिलाफ विशेष जांच दल भी गठित किया गया, लेकिन धरातल पर कोई सुधार होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। प्रदेश सरकार को अब भी इसके लिए बहुत कुछ करना होगा। खासकर पुलिस का चरित्र सुधारना सबसे बड़ी चुनौती है। पुलिस पर आए दिन शिकायत पर कार्रवाई न करने के आरोप लगते हैं, गत दिवस मोगा में ग्रामीणों ने पुलिस पर नशा बिकवाने तक के आरोप लगाए थे। यह स्थिति उचित नहीं है।इसलिए पुलिस प्रशासन को चाहिए कि वह अपना चरित्र सुधारे और समय रहते शिकायतों पर कार्रवाई करे ताकि अपराधियों पर नियंत्रण रहे और लोगों को कानून हाथ में लेने की आवश्यकता न पड़े।

[ स्थानीय संपादकीय : पंजाब ]