उत्तराखंड में राष्ट्रीय पशु बाघ का कुनबा बढ़ाने की पहल सराहनीय है, लेकिन तमाम चुनौतियां भी मुंहबाए खड़ी हैं। इनसे निबटने के लिए ठोस कदम उठाने की दरकार है
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राष्ट्रीय पशु बाघ के संरक्षण में उल्लेखनीय भूमिका निभा रहा उत्तराखंड इस दिशा में एक और बड़ी पहल करने जा रहा है। यह है राजाजी टाइगर रिजर्व (आरटीआर) में बाघों का कुनबा बढ़ाने के मद्देनजर दूसरे क्षेत्रों से बाघों को शिफ्टिंग। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण यानी एनटीसीए से हरी झंडी और शासन से अनुमति मिलने के बाद इस योजना पर तेजी से कार्य चल रहा है। कोशिश है कि इस रिजर्व के दक्षिणी हिस्से में पडऩे वाली मोतीचूर, बेरीवाड़ा और धौलखंड रेंजों में अक्टूबर तक तीन मादा व दो नर बाघ दूसरे क्षेत्रों से यहां शिफ्ट कर दिए जाएं। बता दें कि आरटीआर के इस हिस्से में लंबे समय से दो बाघिनों की ही मौजूदगी है। ऐसे में यहां इनका कुनबा बढ़ नहीं पा रहा, जबकि दक्षिणी हिस्से में बाघों के लिए उचित वासस्थल है। अलबत्ता, पार्क के दूसरे हिस्से में चीला, गौहरी सहित अन्य रेंजों में बाघों की बहार है और वहां इनकी संख्या दो दर्जन से अधिक हो गई है। अब दक्षिणी हिस्से में बाघों की शिफ्टिंग होने पर पूरे रिजर्व में बाघों का कुनबा बढ़ जाएगा। बता दें कि बाघों के संरक्षण के मामले में उत्तराखंड वर्तमान में देश में दूसरे स्थान पर है और यहां बाघों की संख्या 340 के करीब है। इसमें कार्बेट टाइगर रिजर्व की अहम भूमिका है। अब जिस तरह से बाघ संरक्षण के प्रयासों की कड़ी में राजाजी टाइगर रिजर्व में भी बाघों का कुनबा बढ़ाने की तैयारी चल रही है, उससे उत्तराखंड को बाघ संरक्षण में देश में सिरमौर होते देर नहीं लगेगी। बावजूद इसके चुनौतियां भी कम नहीं हैं। ठीक है कि बाघों के लिए यहां बेहतर पर्यावास है, लेकिन असल चुनौती शिकारियों-तस्करों से इन्हें बचाने की है। यह किसी से छिपा नहीं है कि बाघ समेत दूसरे वन्यजीव शिकारियों के निशाने पर हैं और कई मौकों पर यह बात भी सामने आ चुकी है कि इनके तार अंतर्राष्ट्रीय माफिया से भी जुड़े हैं। यही नहीं, बाघ जंगल की देहरी से बाहर निकलकर मानव के लिए खतरा न बनें, इस पहलू पर भी गंभीरता से ध्यान देना होगा। कहने का आशय ये कि ऐसे मद उठाए जाने की दरकार है, जिससे बाघ भी महफूज रहें और मनुष्य भी। इसे देखते हुए वासस्थल विकास के साथ ही जंगल में बाघों के लिए भोजन-पानी के पुख्ता इंतजामात पर ध्यान देना होगा। फिर ये चुनौतियां ऐसी नहीं कि इनसे पार न पाई जा सके। जरूरत है तो बस ठोस कार्ययोजना तैयार कर इसे धरातल पर उतारने की। तब जाकर ही बाघों का कुनबा बढ़ाने की पहल को सही मायनों में पंख लग पाएंगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्य सरकार इस दिशा में गंभीरता से कदम उठाएगी।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]