सूबे के सबसे व्यस्ततम पटना रेलवे स्टेशन को बम से उड़ाने की धमकी किसी सिरफिरे की करतूत है तो पुलिस प्रशासन के लिए यह राहत की बात हो सकती है, लेकिन जांच में अगर यह नक्सली या आतंकी साजिश साबित होती है तो माना जाएगा कि चुनाव के मुहाने पर खड़े बिहार में सुरक्षा-व्यवस्था की स्थिति चिंताजनक हैं। इससे यह संकेत मिलते हैं कि लोकसभा चुनाव से पहले गांधी मैदान में भाजपा की रैली के दौरान हुए श्रृंखलाबद्ध विस्फोटों के बाद से राजधानी पटना पूरी तरह महफूज नहीं है। कुछ माह पहले बाहरी इलाके के एक लॉज से एक दर्जन शक्तिशाली केन बम बरामद हुए थे, जांच में यह खुलासा हुआ था कि बम नक्सली गतिविधियों में संलिप्त लोगों ने तैयार किए थे, इसका कनेक्शन बहादुर हाउसिंग सोसाइटी के फ्लैट में हुए ब्लास्ट से जुड़ा था। ब्लास्ट के सिलसिले में झारखंड पुलिस ने भी कुछ लोगों को गिरफ्तार किया था, उन लोगों ने ही पटना में केन बमों के रखे जाने की जानकारी दी थी, जिसके आधार पर पटना पुलिस को इनपुट मिले और केन बम बरामद किए गए। इस मामले की जांच करते हुए पुलिस को महीनों बीत गए हैं, यह नहीं पता चल सका है कि इतनी बड़ी संख्या में लॉज में रखे गए केन बमों से कहां विस्फोट कराए जाने थे। ऐसा पहली बार हुआ कि बिहार में विधानसभा चुनाव की घोषणा से महीनों पहले राजनीतिक दलों ने सियासी कसरत शुरू कर दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुजफ्फरपुर से शुरू हुई परिवर्तन रैली से लेकर भागलपुर में समाप्त चौथी आखिरी रैली तक खुफिया रिपोर्ट में गड़बड़ी की आशंका जताई जाती रही है। गनीमत है कि पीएम की रैलियां कड़ी सुरक्षा-व्यवस्था की बदौलत सकुशल सम्पन्न हो गईं।

विधानसभा चुनाव की तारीखों के एलान में अब दो-चार दिन बचे हैं। अधिसूचना लागू होते ही प्रदेश में सियासी हलचल और तेज हो जाएगी, बड़े मैदानों के साथ छोटी जगहों पर भी नेताओं की सभाएं होंंगी, सभाओं में भीड़ का जुटना निश्चित है। इस लिहाज से सुरक्षा-व्यवस्था के प्रति मुस्तैदी अत्यंत जरूरी है। पटना जंक्शन को बम से उड़ाने का एसएमएस दो बार बड़े पुलिस अफसर को भेजना यह सवाल खड़ा करता है कि कोई मामूली व्यक्ति एसपी को ऐसा मैसेज भेजने का साहस नहीं कर सकता, क्योंकि अगर उसे मजाक के तौर पर मैसेज भेजना होता तो वह स्टेशन अधीक्षक, जीआरपी या आरपीएफ को भेजता। मैसेज की शैली 'पटना जंक्शन उड़ा देंगे, बचा सकते हो तो बचा लो भी अत्यंत गंभीर है, यह किसी आम आदमी के दिमाग की उपज नहीं हो सकती। वैसे यह भी हो सकता है कि जिस आपराधिक या आतंकी संगठन की ओर से मैसेज भेजा गया हो, उसने इस बहाने राजधानी की सुरक्षा-व्यवस्था को परखने के लिए यह तरीका अपनाया हो। इस मामले में अच्छा यह हुआ कि राजधानी पुलिस ने एसएमएस आने के तुरंत बाद पटना जंक्शन के साथ आसपास के स्टेशनों की भी सुरक्षा बढ़ा दी। देर रात तक यात्री से लेकर ट्रेनों तक की सघन तलाशी ली गई। जांच में पुलिस ने धमकी वाले मोबाइल नंबर पर संपर्क किया तो वह स्विच ऑफ मिला। पता चला कि नंबर पूर्णिया जिले के व्यक्ति के नाम पर है, पर पुलिस ने जब उसके घर धावा बोला तो मालूम हुआ कि उसने कुछ महीने पहले कंपनी को नंबर वापस कर दिया था। अब उस नंबर का इस्तेमाल पश्चिम चंपारण के नरकटियागंज में रहने वाला कोई व्यक्ति कर रहा है। राजधानी पुलिस देर-सबेर इस मामले से पर्दा उठा ही देगी, परंतु आला पुलिस अफसरों को ऐसा माहौल बनाना चाहिए जिससे चुनावी प्रक्रिया पूरी होने तक इस तरह का वाकया कहीं और न हो।

[स्थानीय संपादकीय: बिहार]