झज्जर के गांव में एक महिला घर में बने पानी के टैंक में तीन बच्चों संग कूद गई। तीनों मासूमों की मौत हो गई और महिला अस्पताल में है। वजह थी घरेलू कलह। घरेलू कलह से आए दिन ऐसी घटनाएं हो रही हैं। यह दर्दनाक है और चिंताजनक भी। यह सिलसिला रुकना चाहिए। परिवार में रह रही महिला का इस तरह का पलायनवादी निर्णय लेना उसकी कमजोर मानसिकता को दर्शाता है। कलह के बाद परिवार के लोग भी उसकी मनोदशा को नहीं समझ पाते हैं। रात में दादी के पास सोने वाली बेटी को अपने पास सुलाना साबित करता है कि वह अवसाद में काफी हद तक डूबी थी। परिवार समय पर सचेत हो जाता तो संभव है इस स्थिति को टाल दिया जाता। पति से हुए विवाद के बाद उसके दमित अचेतन ने विद्रोह कर दिया और वह बच्चों सहित टैंक में कूद गई। इस दौरान उसने यह भी सुनिश्चित किया कि बच्चे भी न बचें। यह घटनाक्रम साबित करता है कि हमारे यहां परिवार की मूल परिभाषा ही खतरे में है। परिवार के मायने होते हैं, वह स्थल जहां हम अपनी भावनाएं, अपने दर्द और अपनी खुशियां अपनों के संग साझा कर सकें। परिवार हमें हर स्थिति से निपटने के लिए संबल भी देता है। पर जिस तरह की मानसिक स्थिति में यह महिला थी, वह साबित करती है कि परिवार में बस कहने को ही थी। आपसी कलह में आत्मघाती कदम उठा लेना या फिर बच्चों की जान ले लेना क्रूरतम अपकृत्य है और समाज को ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए पहले ही सचेत होने की आवश्यकता है। बदलते सामाजिक परिवेश में रिश्तों की परिभाषा तेजी से बदल रही है। यहां अपेक्षाएं भी अधिक रहती हैं और प्रतिक्रियाएं भी। ऐसे में जब अपेक्षाएं अंदर ही दफन होने लगती हैं तो यह विस्फोट होता है। आवश्यकता है कि समाज महिलाओं को भी अपनी भावनाएं व्यक्त करने का सही मौका व विकल्प दे। अन्यथा इस तरह की घटनाओं पर विराम नहीं लगेगा और निर्दोष जानें जाती रहेंगी। परिवार के अन्य सदस्यों को खासकर पुरुष सदस्यों को चाहिए कि वह महिलाओं की भावनाओं को समझे।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]