कर बढ़ाने के पहले सोचें
बिजली पर निगम कर बढ़ाकर प्रदेश सरकार भले ही वित्तीय स्थिति मजबूत कर ले, लेकिन इससे प्रदेश के लोग कतई खुश नहीं होंगे।
बिजली पर निगम कर बढ़ाकर प्रदेश सरकार भले ही नगर निगम, परिषद और पालिकाओं की वित्तीय स्थिति मजबूत कर ले, लेकिन इससे करो की मार झेल रहे प्रदेश के लोग कतई खुश नहीं होंगे। हालांकि सरकार का दावा है कि इस राशि को बुनियादी ढांचे को दुरुस्त करने में लगाया जाएगा। मगर यह बात छिपी नहीं है कि स्थानीय निकाय संस्थाएं बुनियादी ढांचे पर कितना ध्यान देती हैं और लोगों को जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए कितनी सचेत रहती हैं? यदि ये संस्थाएं ईमानदारी से नीति बनाकर अच्छी नीयत के साथ काम कर रही होतीं तो शायद आम जन को उन पर विश्वास भी होता। आखिर तमाम तरह के कर तो वे पहले से लेती रही हैं, लेकिन बदले में शहर के लोगों क्या मिलता है? न स्ट्रीट लाइट दुरुस्त रहती हैं न सफाई व्यवस्था। यह बात भी सरकार को समझ लेनी चाहिए कि लोग कर इसलिए देते हैं कि उन्हें बदले में सुविधाएं मिलेंगी। कर देने के बाद भी उन्हें सुविधाएं नहीं मिलती है तो उनके मन में निराशा और आक्रोश पनपेगा ही। प्रदेश सरकार इन संस्थाओं से यह क्यों नहीं कहती कि वे अन्य मदों पर होने वाले अपने अनाप-शनाप खर्चे बंद करें। वित्तीय प्रबंधन सीखें। उनकी वित्तीय हालत यदि खराब है तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है? साल-दर-साल कर तो बढ़ते रहते हैं, लेकिन शहर की स्थिति बदहाल होती जाती है। स्थानीय निकाय संस्थाओं को जो राशि बतौर कर मिलती है, उसका इस्तेमाल कहां होता है? कैसे होता है? यह बताया जाना चाहिए। आज जब सब कुछ ऑनलाइन है तो इन संस्थाओं के आय और व्यय का ब्योरा भी ऑनलाइन उपलब्ध कराया जाना चाहिए। इससे करदाता जान सकेगा कि कहां कम खर्च कर ज्यादा बताया गया है और कहां बगैर जरूरत के खर्च किया गया है। यदि ऐसी व्यवस्था हो जाए तो शायद ये संस्थाएं वित्तीय प्रबंधन के प्रति सजग हो जाएंगी।
[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]