बहुत देर से ही सही पर पंजाब के करीब 19 लाख लोगों के लिए यह सुकून की खबर जरूर आई है कि उन्हें पेंशन की राशि मिलने वाली है। इसके बावजूद अब भी कई वर्ग ऐसे हैं जिन्हें सरकार की नजर-ए-इनायत का इंतजार है। नजर-ए-इनायत इसलिए क्योंकि सरकार की उदासीनता के चलते उनकी देय राशि रुकी पड़ी है। यह बहुत हैरानी वाली बात है कि राज्य में सात माह से बुजुर्गो, विधवाओं और दिव्यांगों को 500 रुपये मासिक पेंशन नहीं मिल रही थी। राशि बेशक छोटी हो लेकिन करीब आधा साल अगर उसका वितरण ही न हो सके तो सामाजिक उत्थान व सहायता के सरकार के दावों व योजनाओं की पोल खुलती है। यह माना जा सकता है कि पूर्व अकाली-भाजपा सरकार ने चुनाव के नजदीक पेंशन की राशि के वितरण में दिलचस्पी नहीं दिखाई और फिर नई सरकार ने आते ही इस ओर ध्यान नहीं दिया।

इस सारी कुव्यवस्था में वे लोग पिस गए जो हर माह पेंशन पा रहे थे। यह बात सही है कि राज्य की खराब माली हालत है, पर इसमें भी सरकार को ही इंतजाम करना था। आगे भी करना होगा क्योंकि अब भी वित्त विभाग को तीन माह के पेंशन का इंतजाम करने में पूरे 14 दिन लग गए। पेंशनरों को राहत मिली है यह अच्छी बात है लेकिन सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत कार्यरत करीब 32 हजार कर्मचारी भी लालफीताशाही की वजह से पांच माह से वेतन से वंचित हैं। पहले केंद्र से राशि आने में विलंब हुआ। राशि आई तो राज्य सरकार ने हालांकि अपने हिस्से की राशि भी जारी कर दी लेकिन डायरेक्टर जनरल के कार्यालय से वेतन जारी करने का अधिकार (डीडी पावर) ही नहीं दिया गया है। करीब 15 दिन से यह फाइल वित्त विभाग के पास लंबित पड़ी है।

कछुआ चाल से हो रहे काम से अफसरों व नेताओं को तो कोई फर्क नहीं पड़ने वाला लेकिन 32 हजार परिवार जरूर प्रभावित हैं। उनका क्या कसूर? कमाई का पैसा सरकार के खजाने में अटके रहने से वे कर्मचारी भी सरकार की ओर नजरें लगाए बैठे हैं जिन्होंने गत विधानसभा चुनाव में ड्यूटी दी थी। चुनाव आयोग के नियमानुसार इन सरकारी कर्मचारियों को अतिरिक्त भत्ते दिए जाते हैं लेकिन तीन माह बीत जाने के बाद भी उन्हें यह पैसा नसीब नहीं हुआ है। पेंशनरों की तरह सरकार को उन सभी वर्गो के बारे में भी प्राथमिकता से सोचना होगा जिन्हें वेतन या भत्ते नहीं मिल सके हैं। ऐसा न हुआ तो न जाने कितने परिवारों को मुसीबत भरे दिन देखने पड़ेंगे।

[स्थानीय संपादकीय : पंजाब]