हाल के भारतीय इतिहास के सबसे रहस्यमय और सनसनीखेज हत्याकांड-आरुषि हत्याकांड में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला कई सवालों का जन्म देने वाला है। चूंकि उच्च न्यायालय ने आरुषि की हत्या के आरोप में तलवार दंपत्ति यानी उसके माता-पिता को बरी कर दिया इसलिए यह पुराना सवाल फिर से सतह पर आ गया कि आखिर आरुषि और घरेलू सहायक हेमराज को किसने मारा?

उच्च न्यायालय के फैसले के बाद राहत महसूस कर रहे तलवार दंपत्ति का यह कहना स्वाभाविक है कि उन्हें इंसाफ मिला, लेकिन आखिर आरुषि और हेमराज को इंसाफ कैसे मिलेगा? दुर्भाग्य से यह वह सवाल है जिसका जवाब किसी के पास नहीं दिख रहा-न सीबीआइ के पास और न ही न्यायपालिका के पास। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं कि सीबीआइ का अगला कदम क्या होगा और यदि वह उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय जाती है तो उसका निष्कर्ष क्या होगा, लेकिन यह ध्यान रहे कि किसी मामले की दोबारा जांच यदा-कदा ही हो पाती है।

आरुषि हत्याकांड में तो ऐसा कुछ दिख ही नहीं रहा, जिससे दोबारा जांच की वैसी कोई सूरत बन सके जैसी जेसिका लाल हत्याकांड में बनी थी। आरुषि और हेमराज की हत्या के मामले में पहले तो उत्तर प्रदेश पुलिस किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी और अब उच्च न्यायालय के फैसले से यह साफ हो गया कि सीबीआइ की जांच भी ढाक के तीन पात वाली रही। ऐसा शायद इसलिए हुआ, क्योंकि उत्तर प्रदेश पुलिस ने देश-दुनिया का ध्यान खींचने वाले नोएडा के इस हत्याकांड की जांच बेहद खराब तरीके से की।

क्या इससे हास्यास्पद और कुछ हो सकता है कि जिस घर में आरुषि की हत्या हुई उसकी छत पर घरेलू सहायक हेमराज का शव पड़ा था, लेकिन पुलिस उसे खोजे बगैर लौट गई? जब तक जांच सीबीआइ के पास आती तब तक तमाम साक्ष्यों से छेड़छाड़ हो चुकी थी। रही-सही कसर साक्ष्यों को मिटाने की कोशिश ने पूरी कर दी। सीबीआइ की मानें तो साक्ष्य मिटाने का यह काम खुद तलवार दंपत्ति ने किया।

इस हत्याकांड ने इतनी सुर्खियां शायद इन अजीबोगरीब परिस्थितियों के चलते बटोरीं कि एक तो घर में जबरन प्रवेश का कोई सुबूत नहीं था और दूसरे, घरेलू सहायक की कोई खोज-खबर लिए बगैर तलवार दंपत्ति बेटी का अंतिम संस्कार करने हरिद्वार निकल गए थे। उच्च न्यायालय के फैसले के संदर्भ में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उसने तलवार दंपत्ति को साक्ष्यों के अभाव में बरी किया है, न कि निर्दोष करार दिया है।

नि:संदेह अदालतें प्रमाण के आधार पर ही फैसले देती हैं, लेकिन समाज को संतुष्टि तो तभी होती है जब कोई फैसला होने के साथ ही होते हुए दिखता है। इस मामले में ऐसा कुछ नहीं है। हो सकता है कि उच्च न्यायालय के फैसले के बाद आरुषि हत्याकांड फिर से सुर्खियों में छाए और उस पर किताबें लिखी जाएं एवं फिल्में बनें, लेकिन बात तब बनेगी जब इस सवाल का जवाब मिलेगा कि आखिर आरुषि और हेमराज को किसने मारा? तलवार दंपत्ति के साक्ष्यों के अभाव में बरी होने के बाद यह सवाल और अधिक गहरा गया है।

मुख्य संपादकीय - दैनिक जागरण