जब सघन और संयुक्त रूप से राज्यों की साझेदारी से नक्सलियों के खिलाफ जोरदार अभियान चलेगा तो जरूर सफलता मिलेगी।
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सुकमा के शहीदों की शहादत से आहत गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने नक्सलियों के खिलाफ जिस तकनीक युक्त टारगेटेड लड़ाई की जिद ठानी है, उसमें सफलता जरूर मिलेगी। नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्रिमंडल के अन्य सदस्यों के साथ बैठक में बेहतर रास्ता तय हुआ है। झारखंड नक्सलवाद से गहरे प्रभावित है। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पड़ोसी राज्यों के साथ मिलकर ऑपरेशन चलाने की जिस जरूरत पर दिल्ली की बैठक में बल दिया, वह समय की मांग है। बिहार, ओडिशा, छत्तीसगढ़, बंगाल और यूपी के सीमाई हिस्से में अगर एक साथ ऑपरेशन हो तो नक्सलवाद की जड़ पर सामयिक चोट संभव है। केंद्रीय गृहमंत्री ने भी जिस ड्रोन, बायोमीट्रिक हथियार और ट्रैकर के साथ अभियान के संचालन की व्यवस्था की बात कही है, उससे सुरक्षा एजेंसी को नुकसान कम उठाना पड़ेगा। दरअसल, नक्सलवाद का आर्थिक तंत्र मु_ी भर नक्सलियों के लिए बड़ा उद्योग जैसा है, जिसमें बिना पूंजी और मेहनत के लाखों-करोड़ों की कमाई होती है। इसे आसानी से छोडऩा वे नहीं चाहते। यह सच है कि हाल के दिनों में नक्सली घटनाओं में जबर्दस्त कमी आई है। झारखंड के संदर्भ में यह और भी महत्वपूर्ण है कि जहां 14 साल में मात्र 70 उग्रवादियों ने आत्मसमर्पण किया था, वहीं बीते दो वर्षों में यह संख्या 80 से अधिक की है। सारंडा और सरयू एक्शन प्लान के सहारे सरकार विकास की योजनाएं भी साथ-साथ चला रही है। मुख्यमंत्री संताल के नक्सल प्रभावित इलाकों में भी विकास के लिए तत्पर हैं। यहां पाकुड़ के एसपी अमरजीत बलिहार को नक्सलियों ने गोपीकांदर के पास चार साल पहले गोली मार दी थी। ऐसा लगा था कि अब संताल में नक्सलवाद की गहरी जड़ शायद ही मिट सके। लेकिन, पूरे राज्य में इस पर अंकुश लगा है। सरकार ने आत्मसमर्पण की नीति भी संशोधित की है। एक करोड़ तक का इनाम घोषित किया गया है। लेकिन, अभी बहुत कुछ करना बाकी है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की यह मांग जायज है कि नक्सल प्रभावित राज्यों में चल रहे अद्र्धसैनिक बलों के ट्रेनिंग कैंप और ऑपरेशन के खर्च में केंद्र साझेदारी करे। अभी बिहार के पास ऑपरेशन के लिए अपना हेलीकाप्टर तक नहीं है। बिहार और झारखंड में वारदात कर नक्सली आसानी से एक राज्य से दूसरे में चले जाते हैं। जब सघन और संयुक्त रूप से राज्यों की साझेदारी से अभियान चलेगा तो जरूर सफलता मिलेगी। लेकिन, यह भी सुनिश्चित करना होगा कि केवल पुनर्वास नीति से नहीं, कठोर सजा भी जरूरी है।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]