सूबे के माध्यमिक शिक्षक अपनी मांगों की पूर्ति के लिए जिस तरह बोर्ड परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन कार्य में बाधा पैदा कर रहे हैं, वह हर दृष्टि से अनुचित एवं निंदनीय है। यदि मूल्यांकन कार्य में बाधा के चलते बोर्ड परीक्षा का परिणाम विलंब से घोषित हुआ तो निदरेष विद्यार्थियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। इन हालात में राज्य सरकार ने शिक्षकों के प्रति सख्त रुख अख्तियार करते हुए वेतन कटौती और एफआइआर दर्ज कराने जैसा कठोर निर्णय लिया है।

बेशक शिक्षकों के बारे में ऐसा निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन यदि शिक्षक अपनी मनमानी और हठधर्मिता नहीं छोड़ना चाहते तो सरकार के सामने इसके अलावा क्या चारा बचता है? अभी भी समय है कि शिक्षक अपने बड़प्पन का परिचय दें ताकि उनके पद की मर्यादा बनी रहे। राज्य सरकार को भी पहल करके ऐसा माहौल बनाना चाहिए ताकि इस गतिरोध का सम्मानजनक समाधान निकल सके। संभव है कि शिक्षकों की मांगें जायज हों लेकिन अपनी आवाज बुलंद करने के लिए उन्होंने गलत समय और तरीका चुना। सामाजिक मूल्यों में तमाम गिरावट के बावजूद अब भी शिक्षकों के प्रति आमजन में बहुत सम्मान है।

यह बात भूलकर शिक्षकों का ऐसा रवैया किसी भी तर्क से उचित नहीं ठहराया जा सकता। बेहतर होगा कि राज्य सरकार शिक्षकों की मांगों के समयबद्ध निस्तारण के लिए एक समिति गठित कर दे जो तय अवधि में मांगों के औचित्य पर विचार करके अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दे। इस वक्त सर्वोच्च प्राथमिकता उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन है। शिक्षक इसे अपनी बाध्यकारी जिम्मेदारी मानते हुए यह कार्य पूरा करें। राज्य सरकार को भी पूरी संवेदनशीलता के साथ शिक्षकों की मांगों पर विचार करना चाहिए। शिक्षा के विकास के लिए आवश्यक है कि शिक्षक पूर्ण मनोयोग से अध्यापन कार्य करें।

यह सिर्फ तब संभव है, जब शिक्षक हर चिंता से मुक्त रहकर अच्छे माहौल में कार्य करें। यह भी देखने की बात है कि शिक्षकों की ये मांगें कब से लंबित हैं? शिक्षा विभाग ने इन मांगों के निस्तारण के लिए अब तक ठोस कार्यवाही क्यों नहीं की, जिसके चलते शिक्षकों को मूल्यांकन बाधित करने जैसा अनुचित कदम उठना पड़ा।शिक्षकों के असहयोग से बिहार बोर्ड की इंटरमीडिएट परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन कार्य बाधित होना दुर्भाग्यपूर्ण है। बेहतर होगा कि दोनों पक्ष अतिवाद त्यागकर इस गतिरोध का सम्मानजनक समाधान निकालें।